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Friday, 29 September 2017

राजस्थान में कृषि एवं फसलें (Agriculture and Crops in Rajasthan)



राजस्थान में कृषि एवं फसलें (Agriculture and Crops in Rajasthan)
  • स्वतंत्रता से पूर्व राजस्थान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
  • राजस्थान की कुल कार्यशील जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत रोजगार की दृष्टि से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है।
  • राजस्थान राज्य की सम्पूर्ण आय का लगभग 52 प्रतिशत कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों से होती है।
  • राजस्थान में भारत के कुल कृषिगत क्षेत्रफल का 10.2 प्रतिशत है।
  • राजस्थान के कुल कृषिगत क्षेत्रफल का 2/3 भाग खरीफ के मौसम में बोया जाता है।
  • राजस्थान के कुल कृषि क्षेत्रफल का लगभग 32.4 प्रतिशत भाग सिंचित है।
खाद्यान्न फसलें (Cereals)
  • राजस्थान में खाद्यान्नों में गेहूं, जौ, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार, रबी एवं खरीफ की दलहन फसलें शामिल हैं।
1. गेहूं (Wheat)
  • राजस्थान का गेहूं के उत्पादन में भारत में चौथा स्थान है। भारत के कुल गेहूं उत्पादन का 8 प्रतिशत राज्य में होता है।
  • राजस्थान में गेहूं सर्वाधिक मात्रा में एवं सर्वाधिक सिंचित क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसल है जो रबी की फसल है।
  • राज्य में सर्वाधिक क्षेत्र में खाद्यान्न फसल के रूप में गेहूं बोया जाता है।
  • गेहूं को बोये जाने के समय तापमान कम से कम 8° से 10° सें. तक होना चाहिए तथा पकने के समय तापमान 15° से 20° सें. तक होना चाहिए।
  • 50 सेमी. से 100 सेमी. के बीच वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • राजस्थान में साधारण गेहूं (ट्रीटीकम) एवं मेकरोनी गेहूं (लाल गेहूं) सर्वाधिक पैदा होता है।
  • गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र पूर्वी एवं दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान के जयपुर, अलवर, कोटा, गंगानगर, हनुमानगढ़ और सवाई माधोपुर जिले हैं।
  • राजस्थान में सर्वाधिक गेहूं गंगानगर जिले में उत्पादित होता है इसलिए गंगानगर जिला अन्न का भण्डार कहलाता है।
  • नाइट्रोजन युक्त दोमट मिट्टी, महीन काँप मिट्टी व चीका प्रधान मिट्टी गेहूं उत्पादन हेतु उपयुक्त होती है। मिट्टी pH मान 5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए।
  • राजस्थान में दुर्गापुरा-65, कल्याण सोना, मैक्सिकन, सोनेरा, शरबती, कोहिनूर, सोनालिका, गंगा सुनहरी, मंगला, कार्निया-65, लाल बहादुर, चम्बल-65, राजस्थान-3077 आदि किस्में बोई जाती हैं।
  • गेहूं में छाछ्या, करजवा, रतुआ, चेपा रोग पाए जाते हैं
  • इण्डिया मिक्स- गेहूं, मक्का व सोयाबीन का मिश्रित आटा।
  • गौचणी- गेहूं, जौ, चना का मिश्रित आटा।
2. जौ(Barley)-
  • राजस्थान में जौ उत्पादन क्षेत्रफल लगभग 2.5 लाख हेक्टेयर है।
  • जौ उत्पादन में राजस्थान का उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान है।
  • भारत के कुल उत्पादन का 1/4 भाग राजस्थान में पैदा होता है।
  • जौ शीतोष्ण जलवायु का पौधा है तथा रबी की फसल है।
  • जौ की बुवाई के समय लगभग 10° सें. तापमान की आवश्यकता है तथा काटते समय 20° से 22° सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
  • जौ के लिए शुष्क और बालू मिश्रित काँप मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • जौ की प्रमुख किस्में ज्योति, RS-6, राजकिरण, R.D.- 2503, RS-6, मोल्वा आदि है।
  • राजस्थान में प्रमुख जौ उत्पादन जिले जयपुर (सर्वाधिक), उदयपुर, अलवर, भीलवाड़ा व अजमेर हैं।
  • जौ का उपयोग मिसी रोटी बनाने, मधुमेह रोगी के उपचार, शराब व बीयर बनाने, माल्ट उद्योग में किया जाता है।
3. बाजरा (Bajra)-
  • बाजरा का जन्म अफ्रीका को माना जाता है।
  • विश्व का सर्वाधिक बाजरा भारत में पैदा होता है।
  • बाजरे के उत्पादन एवं क्षेत्रफल में राजस्थान का भारत में प्रथम स्थान है।
  • राजस्थान देश का लगभग एक तिहाई बाजरा उत्पादित करता है।
  • बाजरा राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र पर बोई जाने वाली खरीफ की फसल है।
  • बाजरा के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। बाजरे की बुवाई मई, जून या जुलाई माह में होती है।
  • बाजरे की बुवाई करते समय तापमान 35° से 40° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
  • बाजरे के लिए 50 सेमी. से कम वर्षा उपयुक्त रहती है। बाजरा बलुई, बंजर, मरुस्थलीय तथा अर्द्ध काँपीय मिट्टी में पैदा होता है।
  • बाजरा की प्रमुख किस्में ICTP-8203, WCC-75, राजस्थान-171, RHB-30, RHB-58, RHB-911, राजस्थान बाजरा चरी-2 है।
  • बाजरा को जोगिया, ग्रीन ईयर, कण्डुआ, सूखा रोग नुकसान पहुँचाते है।
  • बाजरे की फसल के गोंद (अरकट) लगने से यह ज़हरीला हो जाता है जो गर्भपात और उल्टी-दस्त का कारण बन जाता है।
  • बाजरा के प्रमुख उत्पादक जिले बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, जयपुर, बीकानेर, करौली, जैसलमेर आदि है।
  • केन्द्र सरकार द्वारा अखिल भारतीय समन्वित बाजरा सुधार परियोजना व मिलेट डायरेक्टोरेट को क्रमशः पूना व चैन्नई से जोधपुर व जयपुर स्थानांतरित किया गया है। दो नए केन्द्र बीकानेर एवं जोधपुर में स्थापित किए गए हैं।
3. मक्का (Maize)
  • भारत के कुल मक्का उत्पादन का 1/8 भाग राजस्थान में उत्पादित होता है।
  • मक्का मुख्यत: खरीफ की फसल है।
  • उष्ण एवं आर्द्र जलवायु मक्का के उपयुक्त रहती है।
  • मक्का की बुवाई करते समय औसत तापमान 21° से 27° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
  • मक्का के लिए 50 सेमी. से 80 सेमी. तक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • मक्का के लिए नाइट्रोजन व जीवांशयुक्त मिट्टी, दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में गेहूं, चावल, ज्वार के बाद खाद्यान्न में मक्का का चौथा स्थान है।
  • मक्का की प्रमुख किस्में माही कंचन, माही धवल, सविता (संकर किस्म), नवजोत, गंगा-2, गंगा-11, अगेती-76, किरण आदि है।
  • राजस्थान में मक्का के प्रमुख उत्पादक जिले उदयपुर (सर्वाधिक), चितौड़गढ़, भीलवाड़ा व बांसवाड़ा है।
  • मक्का की हरी पत्तियों से साईलेज चारा बनाया जाता है।
  • कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्के के पौधे का 80 प्रतिशत विकास रात के समय होता है।
  • बांसवाड़ा जिले के बोरवर गाँव में कृषि अनुसंधान केन्द्र संचालित है। दक्षिणी राजस्थान में रबी के मौसम में भी मक्का की खेती को किसानों में लोकप्रिय बनाने का श्रेय बांसवाड़ा कृषि अनुसंधान केन्द्र को दिया जाता हैै। इस केन्द्र ने मक्का की संयुक्त किस्में माही कंचन एवं माही धवल विकसित की है।
  • मक्का के दानों से मांडी (स्टार्च), ग्लूकोज तथा एल्कोहल तैयार किया जाता है।
  • मक्का मेवाड़ क्षेत्र का प्रमुख खाद्यान्न हैं।
 5. चावल (Rice)-
  • चावल भारत में सर्वाधिक मात्रा में उत्पादित होने वाला खाद्यान्न है। भारत में सर्वाधिक चावल उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है।
  • चावल उष्ण कटिबंधीय पौधा है। इसके लिए  20° से 27° सेन्टीग्रेड तक तापमान एवं 125 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती हैं।
  • चावल के लिए काँपीय, दोमट, चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • वर्तमान में राजस्थान में जापानी पद्धति से चावल की खेती की जाती है।
  • चावल की प्रमुख किस्में कावेरी, जया, परमल, चम्बल, गरडा़बासमती, NP-130, BK-190, T-29, सफेदा एवं लकडा़, माही सुगंधा (कृषि अनुसंधान केन्द्र, बांसवाड़ा द्वारा विकसित) है।
  • राजस्थान में प्रमुख चावल उत्पादक जिले बांसवाड़ा, बूंदी, हनुमानगढ़, बारां, कोटा, उदयपुर और गंगानगर हैं।
  • राजस्थान का लगभग आधा चावल उत्पादन केवल दो जिलों बांसवाड़ा व हनुमानगढ़ में होता है।
  • राजस्थान में चावल का प्रति हैक्टेयर उत्पादन सर्वाधिक हनुमानगढ़ जिले में होता है।
6. ज्वार (Jowar)-
  • ज्वार उष्ण कटिबंधीय खरीफ की फसल है तथा इसके लिए औसत तापमान 20° से 32° सेन्टीग्रेड तथा 50 से 60 सेमी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त रहती है।
  • ज्वार की बुवाई हेतु दोमट मिट्टी अथवा गहरी या मध्य काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में ज्वार की दो प्रमुख किस्में- राजस्थान चरी-1 एवं चरी-2 चारे के लिए तैयार की गई है।
  • राजस्थान में प्रमुख ज्वार उत्पादक जिले अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, भरतपुर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर, अलवर, जयपुर व टोंक हैं।
  • ज्वार को सोरगम व गरीब की रोटी भी कहा जाता है।
  • राजस्थान में ज्वार का क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है।
 7. दलहन (Pulses)-
  • राज्य में रबी मौसम में चना, मटर व मसूर तथा खरीफ के मौसम में मोठ, उड़द, मूंग, चवला व अरहर प्रमुख दलहनी फसलें हैं।
  • राजस्थान में दलहनी फसलें 18 प्रतिशत क्षेत्रफल पर बोई जाती है।
  • दलहन का उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से 1974-75 में केन्द्र संचालित दलहन विकास योजना शुरू की गई।
  • राजस्थान में दालों का सर्वाधिक उत्पादन जोधपुर जिले में होता है।
  • देश में दलहन उत्पादन की दृष्टि से राजस्थान का छठा स्थान है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक अरहर व तुअर- बांसवाड़ा, मूंग- नागौर, मोठ- बाड़मेर, उड़द- चितौड़गढ़, चवला- सीकर, मसूर- भरतपुर तथा मटर-पनीर जयपुर जिले में उत्पादित होती है।
  • चना- भारत में चने के कुल क्षेत्रफल का 22.78 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में हैं।
    उत्तरप्रदेश के बाद चना उत्पादक में राजस्थान का दूसरा स्थान है।
    क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा, गेहूं के बाद चने को तीसरा स्थान प्राप्त है।
    राजस्थान में राष्ट्रीय औसत से चने का उत्पादन प्रति हैक्टेयर अधिक होता है जबकि अन्य लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन राष्ट्रीय औसत से कम होता है।
    राजस्थान में कुल दलहनी फसलों में चने का उत्पादन सर्वाधिक होता है।
    रबी की दलहनी फसलों में राज्य में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर चना बोया जाता है
    चना की बुवाई के समय तापमान लगभग 20° सेन्टीग्रेड एवं काटते समय तापमान 30° से 35° सेन्टीग्रेड तक होना चाहिए।
    चना के लिए हल्की बलुई मिट्टी उपयुक्त रहती है तथा 50 से 85 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
    चना की प्रमुख किस्मेंRSG-2, BJ-209, GNG-16, RS-10, वरदान, सम्राट, काबुली आदि है।
    राजस्थान में प्रमुख चना उत्पादक जिले गंगानगर, बीकानेर, सीकर, चुरू, हनुमानगढ़ आदि है।
    चना का उपयोग दाल बनाने, जानवरों को खिलाने तथा माल्ट उद्योग में किया जाता है।
    गेहूं व जौ के साथ चना बोना स्थानीय भाषा में गोचनी या बेझड़ कहलाता है।
  • मोठ- खरीफ की दलहन फसलों में मोठ सर्वाधिक भू-भाग पर बोया जाता है। मोठ के उत्पादन में भारत में राजस्थान का पहला स्थान है। दलहनी फसलों में सर्वाधिक सूखा सहन करने वाली फसल मोठ है।
  • उड़द- उड़द उष्ण कटिबंधीय पौधा है। इसके लिए दोमट तथा भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है।
व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)
1. गन्ना ((Sugarcane)-
  • गन्ना एक प्रमुख व्यापारिक फसल है, यह मूल रूप से भारतीय पौधा है।
  • विश्व में भारत का गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान है।
  • गन्ने की फसल एक बार बुवाई करने पर तीन साल तक उत्पादन देती है।
  • भारत में सर्वाधिक गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश (देश का 40 प्रतिशत) है जबकि राजस्थान में भारत के कुल उत्पादन का लगभग 0.04 प्रतिशत होता है।
  • गन्ने की खेती के लिए 15° से 24° सेन्टीग्रेट तापमान तथा 100 से 200 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • राजस्थान में गन्ना बूंदी (सर्वाधिक), उदयपुर, चितौड़गढ़ व गंगानगर जिलों में उत्पादित होता है।
  • गन्ने में लाल सड़न रोग, पाइरिला, कण्डवा, रेडक्रास आदि रोग लग जाते हैं।
2. कपास ( Cotton)-
  • कपास मूलतः भारतीय पौधा है। इसका विकास सिंधु घाटी सभ्यता में हुआ।
  • राजस्थान का कपास के उत्पादन में देश में 8वां स्थान है। कपास उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
  • कपास के लिए 20° से 30° सेन्टीग्रेट तापमान, 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा तथा नमी युक्त चिकनी मिट्टी या काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • राजस्थान में कपास को ग्रामीण भाषा में बणीया कहा जाता है। इसे सफेद सोना भी कहा जाता है।
  • कपास की बुवाई मई-जून के महीने में की जाती है।
  • ज्यादा ठंड से कपास की फसल को बालबीविल कीड़ा नुकसान पहुँचाता है।इसकी रोग प्रतिरोधक फसल भिण्डी होती है।
  • राजस्थान में कपास गंगानगर (सर्वाधिक), हनुमानगढ़, अजमेर, भीलवाड़ा, झालावाड़, चितौड़गढ़, उदयपुर, पाली, कोटा, बूंदी व झालावाड़ जिलों में उत्पादित होता है।
  • कपास की एक गांठ का वजन 170 किलोग्राम होता है।
  • राज्य में में बोई जाने वाली कपास के विभिन्न प्रकार :- 1. नरमा - श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ में बोयी जाती है। 2.अमेरिकन कपास - लम्बे रेशे वाली वाली कपास गंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में सर्वाधिक होती है। 3.मालवी कपास- यह कपास कोटा, बूंदी, झालावाड़ व टोंक जिलों में बोयी जाती है। 4.देशी कपास- यह कपास उदयपुर, चितौड़गढ़ व बांसवाड़ा जिलों में सर्वाधिक बोयी जाती है। 3.मरूविकास (Raj.H.H.-16)- राजस्थान में कपास की पहली संकर किस्म। 6.बी.टी. कपास- बेसिलस थ्रेजेन्सिस (विशेष क्रिस्टल प्रोटीन बनाने वाला) का बीज में प्रत्यारोपण। इसमें जैव-अभियांत्रिकी तकनीक से बीज की संरचना में डी.एन.ए. की स्थिति को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और टाक्सीकेट्स में बदला जाता है।
  • राजस्थान के जैसलमेर व चुरू जिलों में कपास का उत्पादन नहीं होता है।
3.तंबाकू(Tobacco)-
  • तम्बाकू का पौधा भारत में सर्वप्रथम 1508 में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया।
  • तम्बाकू के लिए 20° से 35° सेन्टीग्रेड तापमान तथा 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • तम्बाकू एक उष्ण कटिबंधीय पौधा है।
  • राजस्थान में तम्बाकू की दो किस्में प्रमुख हैं- 1.निकोटिना टुबेकम व 2. निकोटिना रास्टिका।
  • राजस्थान में तम्बाकू का सर्वाधिक उत्पादन अलवर जिले में होता है।
4.ग्वार- 
  • ग्वार कपड़ा उद्योग, श्रृंगार, विस्फोटक सामग्री बनाने के काम आता है।
  • ग्वार का उत्पादन बढ़ाने हेतु राजस्थान में दुर्गापुरा (जयपुर) स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र उन्नत किस्में तैयार करता है।
  • सबसे बड़ी ग्वार मण्डी जोधपुर में स्थित है तथा ग्वार गम उद्योग भी जोधपुर में सर्वाधिक है।
  • जोधपुर में ग्वार गम जाँच लैब स्थापित की गई है।
5. खजूर- 
  • खजूर में 70 से 75 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है।
  • खजूर क्षारीयता सहन करने की क्षमता रखता है।
  • खजूर अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में स्थित है। वर्तमान में बीकानेर क्षेत्र में खजूर की खेती की जाती है।
  • खजूर की प्रमुख किस्में हिवानी, मेंजुल, अरबी खजूर, बहरी, जाहिंदी आदि हैं।
  • खजूर में लगने वाला प्रमुख रोग ग्रोफियोला है।
  • देश की पहली व एशिया की दूसरी सबसे बड़ी खजूर पौध प्रयोगशाला जोधपुर के चोपासनी में स्थापित की गई है।
5.ईसबगोल(घोड़ा जीरा) -
  • ईसबगोल के प्रमुख उत्पादक जिले जालौर, बाड़मेर, सिरोही, नागौर, पाली तथा जोधपुर हैं।
  • विश्व का लगभग 80 प्रतिशत ईसबगोल भारत में पैदा होता है।
  • भारत का 40 प्रतिशत ईसबगोल जालौर जिले में पैदा होता है।
  • ईसबगोल का उपयोग औषधि निर्माण, कपड़ों की रंगाई छपाई, सौंदर्य प्रसाधन, फाइबर फूड के निर्माण में किया जाता है।
  • मण्डोर (जोधपुर) में स्थित कृषि अनुसंधान केन्द्र में ईसबगोल पर शोध कार्य किया जा रहा है।
  • राजस्थान में औषधीय महत्व की फसलों के होने वाले निर्यात में ईसबगोल का निर्यात सर्वाधिक होता है।
  • आबूरोड में ईसबगोल का कारखाना स्थापित किया गया है।
 7.जीरा- 
  • जीरा रबी की फसल है।
  • जीरे में होने वाले प्रमुख रोग छाछिया, झुलसा, उकटा आदि है।
  • जीरे की प्रमुख किस्में RS-1, SC-43 हैं।
  • जीरा उत्पादन व क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का देश में पहला स्थान है।
  • जीरा मुख्यत: जालौर जिले की भीनमाल, जसवंतपुरा व रानीवाड़ा तहसीलों में पैदा होता है।
  • राजस्थान में जीरे की सबसे बड़ी मंडी भदवासिया (जोधपुर) में स्थित है।
तिलहन (Oil Seeds)
  • तिलहन के उत्पादन में राजस्थान का उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा स्थान है।
  • राजस्थान में रबी की तिलहन फसलों में सरसों, राई, तारामीरा व अलसी तथा खरीफ की तिलहन फसलों में मूंगफली, सोयाबीन, तिल व अरंडी प्रमुख हैं।
  • राजस्थान में तिलहन के क्षेत्र में लगातार वृद्धि की प्रवृत्ति है।
1. सरसों- 
  • भारत विश्व में सर्वाधिक सरसों उत्पादन करता है। 
  • राजस्थान को सरसों का प्रदेश कहा जाता है।
  • राजस्थान देश का सर्वाधिक सरसों (30 प्रतिशत) उत्पादन एवं उत्पादकता क्षेत्र वाला राज्य है।
  • तिलहन की रबी फसलों में सर्वाधिक क्षेत्रफल सरसों का है।
  • सरसों के लिए शीत एवं शुष्क जलवायु, 15° से 20° सेन्टीग्रेड तापमान, 75 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा व हल्की चिकनी मिट्टी या दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • सरसों की प्रमुख किस्में वरुणा (सबसे उन्नत किस्म) , RH-819, RL-1359, बायो-902 तथा पूसा बोल्ड हैं।
  • सरसों में होने वाले प्रमुख रोग चेंपा (मस्टर्ड एसिड), तना गलन रोग, सफेद रौली तथा आल्टरनेरिया झुलसा हैं।
  • पीली क्रांति (पीत क्रांति) प्रमुखत: सरसों की क्रांति है। हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव तिलहनों में सरसों पर पड़ा।
  • राजस्थान में सरसों के प्रमुख उत्पादक जिले भरतपुर (सर्वाधिक), अलवर, जयपुर, गंगानगर, धौलपुर व सवाईमाधोपुर हैं।
  • सरसों से तेल निकालने के बाद बचने वाली लुगदी खल कहलाती है।
  • भरतपुर जिले के सेवर नामक स्थान पर आठवीं पंचवर्षीय योजना में 20 अक्टूबर, 1993 को केन्द्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई।
  • राजस्थान की सबसे बड़ी सरसों मंडी सुमेरपुर (पाली) में स्थित है।
2.तिल-
  • तिल मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। इसके लिए उष्ण एवं आर्द्र जलवायु उपयुक्त रहती है।
  • तिल के लिए 25° से 35° सेन्टीग्रेड तक तापमान एवं 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता रहती है।
  • तिल के लिए हल्की बलुई और दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की मात्रा हो उपयुक्त रहती है।
  • तिल के प्रमुख उत्पादक जिले पाली (सर्वाधिक) व नागौर हैं।
3.मूँगफली-
  • मूँगफली के लिए 30° से 35° सेन्टीग्रेट तापमान, 50 से 75 सेमी. वार्षिक वर्षा एवं केल्शियम युक्त मिट्टी, हल्की दोमट मिट्टी या हल्की काली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
  • मूँगफली में टिक्का रोग, क्राउनरोट, कालरा, भूँग, सफेद लट आदि रोग लगते हैं।
  • मूँगफली के प्रमुख उत्पादक जिले जयपुर व बीकानेर हैं।
  • मूँगफली उत्पादन के कारण लूणकरणसर (बीकानेर) को राजस्थान का राजकोट कहा जाता है।
  • राजस्थान का देश में मूंगफली उत्पादन की दृष्टि से सातवां स्थान है।
4.सूरजमुखी-
  • सूरजमुखी खरीफ व रबी दोनों मौसम की फसल है।
  • सूरजमुखी के लिए 100 से 120 सेमी. वार्षिक वर्षा व पकने के लिए 135 दिनों की जरूरत रहती है।
  • सूरजमुखी के प्रमुख उत्पादक जिले गंगानगर, झालावाड़, कोटा, जोधपुर व बीकानेर हैं।
  • सूरजमुखी की प्रमुख किस्मेंMSH - 8, EC - 68415 है।
5. सोयाबीन (Glycine Mat)
  • सोयाबीन की फसल के लिए 15° से 34° सेन्टीग्रेड तापमान व 60 से 120 सेमी. वार्षिक वर्षा उपयुक्त रहती है।
  • सोयाबीन विश्व का सबसे सस्ता, सबसे आसान और सबसे अधिक प्रोटीन देने वाला स्त्रोत है।
  • खरीफ तिलहन के अंतर्गत राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में सोयाबीन की खेती की जाती है।
  • सोयाबीन के उत्पादन में राजस्थान का देश में चौथा स्थान है
  • सोयाबीन की प्रमुख किस्में T-1, पंजाब-1, मैक्स-13, गौरव, पूसा-16 आदि हैं।
6. अरण्डी-
  • अरण्डी उत्पादन में राजस्थान का देश में तीसरा स्थान है जबकि प्रथम स्थान गुजरात का है।
7. होहोबा-जोजोबा (सायमन्डेसिया चायनेन्सिम)-
  • होहोबा-जोजोबा एक विदेशी पादप है तथा इसे पीला सोना भी कहा जाता है।
  • यह खारे पानी व अधिक गर्मी को सहन करने वाला पौधा है।
  • होहोबा-जोजोबा प्रायः इजरायल, मैक्सिको, कैलिफोर्निया आदि देशों के रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता हैं।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम यह पौधा 1965 में काजरी (जोधपुर) में इजरायल से लाया गया।
  • होहोबा-जोजोबा से प्राप्त तेल का उपयोग लुब्रिकेशन के रूप में, प्रसाधन सामग्री व चिपकाने वाले पदार्थों के निर्माण में किया जाता है।
  • एपोर्ज संस्थान द्वारा फतेहपुर (सीकर-70 हैक्टेयर) एवं ढंड (जयपुर-5.45 हैक्टेयर) में होहोबा-जोजोबा फार्म विकसित किए गए हैं।
  • बीकानेर के झज्जर में जोजोबा प्लांटेशन की राज्य की निजी क्षेत्र में सबसे बड़ी परियोजना शुरू की गई है।
8. जैतून-
  • हानिकारक कालेस्ट्रोल को नियंत्रित और कम करने में सहायक जैतून के खाद्य तेल उत्पादन हेतु राजस्थान में जैतून की खेती की जाती है।
  • राजस्थान में जैतून का पौधा इजरायल से लाया गया है।
  • जैतून को अमन का प्रतीक माना जाता है। जैतून की पत्तियां लेकर उड़ान भरता पक्षी संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रतीक चिह्न है।
 पुष्प (फूल) कृषि
  • पुष्कर (अजमेर)- राजस्थान सरकार द्वारा राज्य की प्रथम पुष्क मंडी पुष्कर (अजमेर) में विकसित की गई है। राज्य में दमश्क गुलाब (चैती गुलाब) अर्थात् देशी गुलाब की खेती पुष्कर, अजमेर में होती है। रोज इंडिया नामक गुलाब की विशिष्ट किस्म है।
  • खमनौर (राजसमंद)- यहाँ दमश्क/चैती गुलाब की जाती है। चैती गुलाब का इत्र सर्वश्रेष्ठ होता है।
  • खुशखेड़ा (अलवर)- यहाँ रीको द्वारा पुष्प पार्क स्थापित किया जा रहा है।
 महत्वपूर्ण तथ्य
  • राजस्थान में स्यालू खरीफ) की खेती वह खेती होती है जिसमें आषाढ़ में मक्का, बाजरा आदि की बुवाई कर आसोज (आश्विन) में काट लिया जाता है।
  • राजस्थान में उनालू (रबी) की खेती वह खेती है जिसमें कार्तिक में गेहूं, जौ आदि बुवाई करके चैत्र-वैशाख में काट लिया जाता है।
  • राजस्थान में दीपावली से पूर्व बोई गई खेती अगेती, अगावती व अंगातो कहलाती है और दीपावली के बाद मार्गशीर्ष माह में बोई गई खेती पछेती व पछांतो कहलाती है।
  • खेत जोतने से पहले खेत के झाड़-झंखाड़ साफ करने को सूड़ करना कहा जाता है।
  • राजस्थान में ईसबगोल, जीरा व टमाटर की खेती के लिए जालौर एवं सिरोही जिले प्रसिद्ध है। राज्य में धनिये की खेती बारां, कोटा, झालावाड़, बूंदी, सवाईमाधोपुर व जयपुर जिलों में की जाती है।
  • नागौर (ताउसर) पान मैथी (हरी मैथी) के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
  • राजस्थान में कोटा जिला मसाला उत्पादन में अग्रणी है।
  • भारत में हरित क्रांति का एम.एस. स्वामीनाथन के प्रयासों से 1966-67 में प्रारंभ हुई।
  • राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर आदि जिलों में झूमिंग प्रणाली की वालरा खेती की जाती है।
  • राजस्थान राज्य सहकारी तिलहन उत्पादन संघ लिमिटेड (तिलम संघ) की स्थापना 1990 में की गई।
  • राज्य में तीन कृषि निर्यात क्षेत्र जोधपुर (ग्वार, मेहन्दी, मोठ, मसालों हेतु), कोटा (धनिया तथा औषधीय महत्व के पौधों हेतु) तथा गंगानगर में रसदार फल हेतु स्थापित किए गए हैं।


Friday, 15 September 2017

राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य (National Park and Wildlife sanctuaries in Rajasthan)

राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य (National Parks and Wildlife sanctuaries in Rajasthan)
  • केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किया गया पशु-पक्षियों का स्थल राष्ट्रीय उद्यान कहलाता है, जबकि राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया स्थल अभयारण्य कहलाता है।
  • राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान व 26 अभयारण्य हैं।
राष्ट्रीय उद्यान (National Parks)
1. रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान-
  • सवाईमाधोपुर जिले में स्थित इस अभयारण्य को 1 नवंबर,1980 को राज्य के प्रथम राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया।
  • इस उद्यान को1974 में बाघ परियोजना के अंतर्गत चयनित किया गया।
  • यह देश की सबसे कम क्षेत्रफल वाली बाघ परियोजना है।
  • यह उद्यान अरावली तथा विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य 392 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राष्ट्रीय स्मारक घोषित रणथंभौर दूर्ग इस उद्यान में स्थित है।
  • इस उद्यान में बाघ, बघेरा, चीतल, सांभर, नीलगाय, रीछ, जरख एवं चिंकारा पाए जाते हैं।
  • धौंक वृक्ष तथा ढाक वनस्पतियां इस उद्यान में पाई जाती है।
  • आरक्षित क्षेत्र घोषित हो जाने पर रणथंभौर बाघ परियोजना को रामगढ़ (बूंदी) अभयारण्य से जोड़ दिया गया है।
  • रणथंभौर उद्यान क्षेत्र में पदम तालाब, राजबाग, मलिक तालाब, गिलाई सागर, मानसरोवर एवं लाभपुर झीलें स्थित है।
2. केवलादेव (घना) राष्ट्रीय उद्यान-
  • एशिया में पक्षियों की सबसे बड़ी प्रणयस्थली, पक्षी प्रेमियों का तीर्थ, हिम पक्षियों का शीत बसेरा, पक्षियों का स्वर्ग आदि नामों से प्रसिद्ध यह उद्यान भारत के प्रमुख पर्यटन परिपथ 'सुनहरा त्रिकोण' (दिल्ली-आगरा-जयपुर) पर स्थित है।
  • 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
  • सन् 1985 में 29 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले इस उद्यान को यूनेस्को द्वारा विश्व प्राकृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया।
  • यहां कामन क्रेन, दुर्लभ साइबेरियन सारस, गीज, पोयार्ड, लेपबिंग, बेगर्टल एवं रोजी पोलीकन नामक पक्षी पाए जाते हैं।
3. मुकन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान-
  •  9 जनवरी, 2012 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
  • यह कोटा व चितौड़गढ़ में 199.55 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
राजस्थान के अभयारण्य (Sanctuaries in Rajasthan)
1. सरिस्का वन्य जीव अभयारण्य-
  •  बाघ परियोजना हेतु 1978-79 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया।
  • यह राजस्थान की दूसरी बाघ परियोजना है जो दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर अलवर जिले में अरावली पर्वत माला से घिरा है।
  • इस अभयारण्य में शेर व बाघों के अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा, चौसिंगा, स्याहगोश, जंगली सूअर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
  • इस अभयारण्य में नीलकंठ महादेव का मंदिर, लोकदेवता भर्तृहरि की तपोस्थली, पाण्डुपोल, हनुमान मंदिर एवं राजस्थान पर्यटन विकास निगम की होटल टाइगर डेन स्थित है।
  • यह अभयारण्य हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध है।
2. राष्ट्रीय मरू उद्यान-
  • यह क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है।
  • मरूस्थल में प्राकृतिक वनस्पति को सुरक्षित रखने, वन्य प्राणियों को संरक्षण प्रदान करने और करोड़ों वर्षों से पृथ्वी के गर्भ में दबे हुए जीवाश्म को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से 8 मई, 1981 को राष्ट्रीय मरू उद्यान की स्थापना की गई।
  • यह अभयारण्य जैसलमेर व बाड़मेर जिले के तीन हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • यहां राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण (ग्रेट इंडियन वस्टर्ड) पाया जाता है।
  • इस अभयारण्य में प्रकृति के अद्भुत करिश्में के रूप में लाखों वर्ष पूर्व के सागरीय जीवन के 25 वुड फासिल विद्यमान हैं।
  • भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत पूर्ण संरक्षण प्राप्त राज्य पक्षी गोडावण इस अभयारण्य में स्वच्छंद निवास करता है।
  • आकलवुड फासिल पार्क इस अभयारण्य में स्थित है।
3. दर्रा वन्य जीव अभयारण्य-
  • यह अभयारण्य कोटा से 50 किलोमीटर दक्षिण में विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में मुकन्दरा अथवा दर्रा की पहाड़ियों में विस्तृत है।
  • यहां सांभर, चीतल, नीलगाय, हिरण और जंगली सूअर पाए जाते हैं।
  • इस अभयारण्य के निकट गागरोन का किला, रांवठा महल, दर्रा के महत्वपूर्ण बाडोली के मन्दिर, अबली मीणी का महल एवं मन्दिरगढ़ के मन्दिर स्थित है।
  • यह अभयारण्य गागरोनी अथवा हीरामन तोतों के लिए प्रसिद्ध है।
4. कुम्भलगढ़ वन्य जीव अभयारण्य-
  • यह अभयारण्य अरावली पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी भाग में उदयपुर, राजसमंद व पाली जिलों में फैला हुआ है।
  • इस अभयारण्य का क्षेत्रफल लगभग 586 वर्ग किमी. है।
  • यह अभयारण्य रीछ, भेड़ियों, जंगली सूअर व जंगली मुर्गों के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • इस अभयारण्य में चौसिंगा भी पाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में घंटेल कहा जाता है। यह ऐसा हिरण है जिसके नर के चार सींग होते हैं, यह केवल भारत में ही पाया जाता है।
  • इस अभयारण्य के सृजन का मुख्य उद्देश्य भेड़ियों का संरक्षण करना था।
  • बनास नदी का उद्गम स्थल यही अभ्यारण्य है।
5. जयसमंद वन्य जीव अभयारण्य-
  • इस अभयारण्य की स्थापना 1957 में की गई।
  • यह अभयारण्य उदयपुर से लगभग 52 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में जयसमंद झील क्षेत्र में वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु स्थापित किया गया।
  • इस अभयारण्य में लकड़बग्घा, बघेरा, सियार, चीतल, चिंकारा, जंगली सूअर एवं नीलगाय पाए जाते हैं।
6. वनविहार अभयारण्य आगरा-
  • यह अभयारण्य आगरा-धौलपुर-मुम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर 25.6 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • इस पर्वतीय अभयारण्य में सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा एवं मोर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
7. सीतामाता अभयारण्य-
  • यह अभयारण्य प्रतापगढ़, चितौड़गढ़ व उदयपुर जिले में 423 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राज्य सरकार ने सीतामाता धर्मस्थली के चारों तरफ सघन वन क्षेत्र के पारिस्थितिक, वानस्पतिक एवं वन्य जीवों के महत्व को देखते हुए सन् 1979 में इसे अभयारण्य घोषित किया गया।
  • आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित इस अभयारण्य में एन्टीलोप प्रजाति का दुर्लभ प्राणी चौसिंगा एवं उड़न गिलहरीयां पाई जाती हैं।
  • यह अभयारण्य क्षेत्र सागवान-बांस मिश्रित वनों की देश में उत्तर-पश्चिमी सीमा है।
8. नाहरगढ़ जैविक अभयारण्य- 
  • यह अभयारण्य जयपुर-दिल्ली राजमार्ग पर आमेर (जयपुर) के पास स्थित है।
  • इस जैविक अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों का संरक्षण, वन्य जीवन संबंधी शिक्षा एवं शोध कार्य है।
  • यह अभयारण्य मुख्य रूप से चिंकारों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह राज्य का प्रथम जैविक अभयारण्य है।
  • यहां काले हिरण, जंगली भेड़िए,स्याहगोश आदि वन्य जीव मिलते हैं।
  • यह अभयारण्य नाहरगढ़ दुर्ग के पास स्थित है
 9. जमवा रामगढ़ वन्य जीव अभयारण्य-
  • यह वन्य जीव अभयारण्य जयपुर जिले में जमवारामगढ़ के पास लगभग 300 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • इस अभयारण्य में चिंकारा, नीलगाय, चीतल, लंगूर, मोर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
 10. रामगढ़ विषधारी अभयारण्य-
  • बूंदी जिले में स्थित यह अभयारण्य 252.79 वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
  •  यहां धौकड़ा वृक्ष मुख्य रूप से पाए जाते हैं।
  • बाघ परियोजना क्षेत्रों के अलावा राजस्थान में यह एकमात्र ऐसा अभयारण्य है जहां राष्ट्रीय पशु बाघ विचरण करते हैं।
  • इस अभयारण्य को रणथंभौर के बाघों का जच्चा केन्द्र कहा जाता है।
11. राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य- 
  • घड़ियालों की सुरक्षा के लिए कोटा जिले में चम्बल नदी पर तीन राज्यों राजस्थान, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश द्वारा इस संयुक्त अभयारण्य की स्थापना सन् 1978 में की गई।
12. गजनेर वन्य जीव अभयारण्य-
  • बीकानेर जिले में स्थित यह अभयारण्य पशु-पक्षियों की शरणस्थली है।
  • यह अभयारण्य बटसड़ पक्षी (इंपीरियल सेंडगाउज) के लिए विश्व प्रसिद्ध है।इसको रेत का तीतर भी कहते हैं।
13. फुलवारी की नाल अभयारण्य-
  • उदयपुर के पश्चिम में 160 किलोमीटर की दूरी पर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित इस अभयारण्य की पहाड़ी से मानसी वाकल नदी का उद्गम होता है।
  • इस अभयारण्य में बाघ, बघेरा, चीतल, सांभर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
14. भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य (चितौड़गढ़)-
  • चितौड़गढ़-रावतभाटा मार्ग पर स्थित इस अभयारण्य की स्थापना 5 फरवरी, 1983 को की गई।
  • यह अभयारण्य घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यह अभयारण्य एक लम्बी पट्टी के रूप में चम्बल एवं ब्राह्मणी नदियों के साथ फैला हुआ है।
15. बस्सी अभयारण्य-
  • चितौड़गढ़ से 22 किलोमीटर दूर बस्सी कस्बे से सटे इस वन क्षेत्र को 1988 में अभयारण्य घोषित किया गया।
  • यह अभयारण्य जंगली बाघों के लिए प्रसिद्ध है।
  • यहां बघेरा, सियार, जरख, भेड़िया, मगरमच्छ, कछुए तथा उदबिलाव पाए जाते हैं।
16. सज्जनगढ़ अभयारण्य-
  • उदयपुर रियासत के आखेट स्थल के लगभग 5.2 वर्ग किमी. वन क्षेत्र को सन् 1987 में अभयारण्य घोषित किया गया।
  • इस अभयारण्य में सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय, जंगली सूअर आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
17. शेरगढ़ अभयारण्य-
  • सन् 1983 में घोषित यह अभयारण्य बारां जिले में 98 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • इस अभयारण्य में सांभर, बघेरा, जरख, रीछ, लोमड़ी, चीतल आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
  • यह अभयारण्य सांपों का संरक्षण स्थल है
18. बंध बरेठा-
  • भरतपुर जिले स्थित यह अभयारण्य सन् 1985 में घोषित किया गया।
  • यह अभयारण्य पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है।
19. रावली टाडगढ़ अभयारण्य-
  • अजमेर, पाली तथा राजसमंद जिलों में स्थित यह अभयारण्य 1983 में घोषित किया गया।
  • यह अभयारण्य 495 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • इस अभयारण्य में बघेरा, रीछ, जरख, नीलगाय, गीदड़ आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
20. केलादेवी अभयारण्य-
  • करौली जिले में स्थित सन् 1983 में घोषित यह अभयारण्य 676 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • इस अभयारण्य में बघेरा, रीछ, जरख, सांभर एवं चीतल पाए जाते हैं।
21. तालछापर अभयारण्य-
  • चुरू जिले की सुजानगढ़ तहसील में स्थित यह अभयारण्य काले हिरणों व प्रवासी पक्षी कुरजाँ की शरणस्थली है।
  • वर्षा के मौसम में इस अभयारण्य में मोथा घास (मोचिया साइप्रस रोटन्डस) उगती है।
 22. मचिया सफारी पार्क-
  • जोधपुर जिले में स्थित इस अभयारण्य में चिंकारा, काले हिरण, नीलगाय आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
  • यह देश का प्रथम वानस्पतिक उद्यान है जहां प्राकृतिक वनस्पतियों को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
23. मांउट आबू अभयारण्य- 
  • राजस्थान सरकार ने 1960 में सिरोही जिले में स्थित आबू पर्वत श्रृंखला के 112.98 वर्ग किमी. क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किया गया।
  • इस अभयारण्य में जंगली मुर्गे एवं डिकिल्पटेरा आबूएन्सिस नामक पादप (विश्व में केवल आबू पर्वत पर ही) पाया जाता है।
  • स्ट्रोबिलेन्थस कैलोसस जिसे स्थानीय भाषा में कारा कहा जाता है, यहाँ पैदा होता है।
राजस्थान के शिकार प्रतिबंधित क्षेत्र
   
     राजस्थान सरकार ने वन्य जीव (सुरक्षा) अधिनियम, 1972 की धारा 37 के अंतर्गत ऐसे समस्त क्षेत्रों में विचरण करने वाले वन्य प्राणियों की सुरक्षा और संवर्धन हेतु आखेट निषिद्ध क्षेत्र एवं उनकी सीमाएं घोषित की है। 
प्रमुख आखेट निषिद्ध क्षेत्र निम्न हैं-
  1. डोली- जोधपुर
  2. गुढा बिश्नोई- जोधपुर
  3. फीटकाशनी- जोधपुर
  4. ढेंचू(देचू)- जोधपुर
  5. सांथीन- जोधपुर
  6. जम्भेश्वर जी- जोधपुर
  7. खेजड़ली- जोधपुर
  8. सौंखलिया- अजमेर
  9. गंगवाना- अजमेर
  10. टिलोरा- अजमेर
  11. मुकाम- बीकानेर
  12. दीयात्रा- बीकानेर
  13. देशनोक- बीकानेर
  14. जोडवीर- बीकानेर
  15. बज्जू- बीकानेर
  16. बर्डोद- अलवर
  17. जौड़िया- अलवर
  18. संथाल- जयपुर
  19. महलां- जयपुर
  20. बागीदोरा- बांसवाड़ा
  21. धोरीमन्ना- बाड़मेर
  22. जारोड़ा- नागौर
  23. रोटू- नागौर
  24. जवाई बांध- पाली
  25. कंवाल जी- सवाई माधोपुर
  26. सोरसन- बारां
  27. उज्जला- जैसलमेर
  28. रामदेवरा- जैसलमेर
  29. रानीपुरा- टोंक
  30. मैनाल- चितौड़गढ़
  31. कनक सागर- बूंदी
  32. सांचौर- जालौर
  33. सांवतसर-कोटसर - बीकानेर

    Sunday, 10 September 2017

    राजस्थान में वनस्पति (Vegetation in Rajasthan)

    राजस्थान में वनस्पति (Vegetation in Rajasthan)
    • सर्वप्रथम राष्ट्रीय वन नीति 1952 में घोषित की गई, जिसके अनुसार वनों के क्षेत्रफल को राज्य के 33.3 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया। 
    • वर्तमान में राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9.54 प्रतिशत भाग पर वन है जबकि 1949-50 में यहां 13 प्रतिशत भाग पर वन थे।
    • राजस्थान में वनों को सर्वाधिक नुकसान ईंधन के लिए वन काटने से हुआ है।
    • राजस्थान के पश्चिमी भाग में वन, कांटेदार पेड़ों व झाड़ियों के रूप में हैं। 
    • राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र घने जंगलों व वन्य जीवों की दृष्टि से समृद्ध है।
    राजस्थान में वनों का वर्गीकरण-
    • राजस्थान में विभिन्न भागों में भूमि एवं जलवायु में भिन्नता के अनुसार वनस्पति में भी भिन्नता पाई जाती है।
    • राजस्थान में निम्नलिखित प्रकार की वनस्पतियां पायी जाती है-
    1. शुष्क सागवान वन-
    •  ये वन सामान्यतः गहरी मिट्टी वाले पठारी क्षेत्रों व अरावली पर्वतमाला के ढालों में पाये जाते हैं।
    • सागवान के वृक्ष औसतन 500 मीटर की ऊंचाई तक मिलते हैं।
    • ये वन मुख्यत: दक्षिणी राजस्थान में बांसवाड़ा (सर्वाधिक), डूंगरपुर, चितौड़गढ़, उदयपुर व कोटा जिलों में पाये जाते हैं।
    • यहां 75 से 110 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है।
    • राज्य के कुल वन क्षेत्र के 6.87 प्रतिशत भाग पर ये वन फैले हुए हैं।
     2. उष्ण कटिबंधीय (मिश्रित पतझड़) वन-
    • ये वन 50 से 80 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
    • ये वन अरावली पर्वतमाला में 770 मीटर की ऊंचाई तक मिलते हैं।
    • इन वनों में धोंकड़ा (धोंक), आम, बरगद, गूलर, नीम, तेंदू, बबूल, बहेड़ा, आंवला,बांस आदि वृक्ष पाए जाते हैं। राजस्थान में धोंकड़ा(धोंक) के वन सर्वाधिक है।
    3.  उपोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन-
    • ये वन आबू पर्वत में 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जहां वार्षिक वर्षा औसतन 150 सेमी. से अधिक रहती है।
    • इन वनों में मुख्यत: बांस, आम, सिरिस, जामुन, रोहिड़ा आदि के वृक्ष मिलते हैं।
    • ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र का 0.38 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं।
    4. शुष्क वन-
    • ये वन राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग के मरूस्थलीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
    • इस क्षेत्र में वर्षा की कमी के कारण प्राकृतिक वनस्पति बहुत ही कम पायी जाती है।
    • इस क्षेत्र में खेजड़ी, रोहिड़ा, बैर, कैर, खजूर, फोग, थूहर, कींकर आदि वृक्ष एवं झाड़ियां पायी जाती है।
    • इस क्षेत्र में सेवण, धामण, मुराल आदि घास भी पायी जाती है। खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान में बहुत उपयोगी होने के कारण इसे राजस्थान का कल्पवृक्ष कहा जाता है।
    5. खैर वन-
    • ये वन ज्यादातर राज्य के दक्षिणी-पूर्वी भाग में बारां, कोटा, बूंदी, झालावाड़ तथा अलवर जिलों में मिलते हैं।
    • ये राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 3 प्रतिशत भाग में पाये जाते हैं।
    • इस क्षेत्र में खैर के साथ घट बोर, धौक, झींझा, बीलपत्र तथा मैंडला के वृक्ष पाए जाते हैं।
    • खैर वनों को सेलेक्शन वन वर्ध्दन पद्धति से पनपाया जाता है।
    • कत्था खैर वृक्ष के तने से बनाया जाता है
    6. धौंक वन- 
    • इन वनों की लकड़ी ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है।
    • राजस्थान के कुल वन क्षेत्र के लगभग आधे (58.19%) भाग पर धौंक वन पाये जाते हैं।
    • ये वन मध्य समुद्र से 240 मीटर से 750 मीटर की ऊंचाई तक पाये जाते हैं।
    • ये वन बूंदी, चितौड़गढ़, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, करौली, अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर व सिरोही जिलों में पाये जाते हैं।
     7. ढाक वन- 
    • ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के 1.5 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं। इन वृक्षों के फूलों से केसरिया रंग बनाया जाता है।
     वनों को कानूनी व प्रशासनिक दृष्टि से, रखरखाव की दृष्टि से तीन भागों में वर्गीकृत किया गया हैं-
    1. आरक्षित (संरक्षित) वन-  ये वन राज्य सरकार के पूर्ण नियंत्रण में होते हैं, जहां लकड़ी काटना और पशुओं को चराना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित होता है। राजस्थान के कुल वन क्षेत्र के लगभग 38.16 प्रतिशत भाग पर ये वन पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों में सामान्य रूप से राष्ट्रीय उद्यान व वन्य जीव अभयारण्य आते हैं। राज्य में सर्वाधिक संरक्षित वन उदयपुर जिले में पाए जाते हैं।
    2. सुरक्षित या रक्षित वन- इस प्रकार के वनों पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है, लेकिन इन वनों को काटने और पशुओं को घास चराने की अनुमति समय-समय पर दे दी जाती है। सर्वाधिक सुरक्षित वन बारां जिले में पाए जाते हैं। ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग आधे (53.36 प्रतिशत) भाग पर पाए जाते हैं।
    3. अवर्गीकृत वन- इस प्रकार के वनों पर राज्य सरकार का नियंत्रण नहीं होने के कारण यह वन अपना विकास एवं उन्नति नहीं कर पाते हैं। ये वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के लगभग 8.48 प्रतिशत भाग पर पाए जाते हैं, जो मुख्यतया मरूस्थलीय जिलों में स्थित है।
    घास
    • सेवण घास- जैसलमेर के उत्तर-पश्चिम में भुट्टेवाला (मोहनगढ़) एवं रामगढ़-जवाई का ताला क्षेत्रों में पाई जाने वाली पौष्टिक घास है जो मरुस्थल के विस्तार को रोकने में सहायक है। यह घास लाठी सीरीज क्षेत्र में पाई जाती है। इस घास का वैज्ञानिक नाम लसियुरूस सिडीक्रस है।
    • मोथा (लेमन) घास- यह सबसे सुगंधित घास है। यह घास घना पक्षी अभयारण्य में पक्षियों के भोजन का आधार है।
    • मोचिया साइप्रस रोटेन्डर्स- यह घास तालछापर अभ्यारण्य में पाई जाती है।
    • भरूत (सेन्फ्रस) घास- राजस्थान में पाई जाने वाली यह घास फैसलों में होने वाले मोल्या और जड़गांठ जैसे रोगों से होने वाले नुक़सान को रोकने में सक्षम है।
    • गाजर घास- अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ इस घास के बीज भारत में आ गए। इस घास से जयपुर जिला सर्वाधिक प्रभावित है। इस घास को चर्म रोग एवं अस्थमा का वाहक माना जाता है
    • धामण(ट्राइडोक्स) घास-  यह घास मवेशियों की जीविका का मुख्य आधार है। यह घास दुधारू पशुओं के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है।
    • डाब-  नुकीले व धारदार पत्ते वाली यह घास ग्रहण के समय सूतक के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए खाद्य सामग्री के साथ घरों में रखी जाती है
    • खस घास- इस घास की जड़ों से सुगंधित तेल निकाला जाता है जो इत्र व शरबत बनाने में उपयोग किया जाता है। यह घास सवाईमाधोपुर, भरतपुर तथा टोंक जिलों में पाई जाती है।
    • पामारोजा व रोशाघास- तम्बाकू को सुगंधित बनाने के लिए इस घास के तेल का उपयोग किया जाता है।
    • बूर घास- बीकानेर में पाई जाने वाली इस घास से आसवन विधि द्वारा सुगंधित तेल प्राप्त किया जाता है। यह औषधीय महत्व की घास है। 
    राजस्थान के वृक्ष व अन्य सामग्री
    • बांस- राज्य के कुल वन क्षेत्र का 2.5 प्रतिशत भाग में बांस पाए जाते हैं। बांस उदयपुर, चितौड़गढ़, बारां वन मंडलों तथा आबू पर्वत पर मिलते हैं। बांस को आदिवासियों का हरा सोना कहा जाता है।
    • महुआ- इस पौधे के फूलों से देशी शराब बनाई जाती है। ये वृक्ष सिरोही, डूंगरपुर, उदयपुर व बांसवाड़ा जिलों में पाए जाते हैं।
    • कत्था- खैर वृक्ष के तने की छाल से बनाया जाता है। कत्थे के प्रमुख उत्पादक जिले उदयपुर, झालावाड़ तथा चितौड़गढ़ है।
    • सालर वृक्ष- इस वृक्ष की लकड़ी का उपयोग सामान पैकिंग करने में किया जाता है। ये वृक्ष सिरोही, उदयपुर, जोधपुर, अजमेर व जयपुर जिलों में पाए जाते हैं।
    • खींप- झाड़ीनुमा इस पौधे के खींपोली नामक फलियां लगती है।
    • एलोवेरा-  यह लिली प्रजाति का औषधीय पादप है जिसका प्रचलित नाम देशी ग्वार पाठा ( संस्कृत नाम- धृतकुमारी) है।
    • हींग- प्रतापगढ़ जिले की सर्वाधिक प्रसिद्ध हींग Ferula Assafoetida नामक झाड़ी की जड़ के रस से प्राप्त की जाती है।
    • गोंद- चौहटन (बाड़मेर) क्षेत्र का गोंद विश्व प्रसिद्ध है।
    • फोग- यह एक झाड़ी है इसके फूलों से फटका साग बनाया जाता है। इसके फूलों का स्थानीय नाम बाड़ीयो है।
    • राजस्थान की वन सम्पदा और पेड़-पौधों का सर्वप्रथम अन्वेषण 1832 में किया गया।
    • सवाई तेजसिंह ने 1947 में फोरेस्ट सेटलमेंट पुनरीक्षण पुस्तक (पीली किताब) तैयार करवाई।
    • स्मृति वन- झालाना (जयपुर) में स्थित वन क्षेत्र जिसका नाम 2006 में बदलकर श्री कर्पूर चन्द्र कुलिश स्मृति वन किया गया।
    • राज्य में कार्यशील जनसंख्या का 0.4 प्रतिशत भाग रोजगार की दृष्टि से वन सम्पदा पर निर्भर है।
    • राज्य में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.06 प्रतिशत है।
    • राजस्थान में सर्वाधिक वन सम्पदा वाला जिला उदयपुर है यहां जिले के कुल भू-भाग का 30.86 प्रतिशत और राज्य के कुल वन क्षेत्र का 14.06 प्रतिशत भाग पर वन है।
    • राज्य में न्यूनतम वन क्षेत्र वाला जिला चुरू है यहां जिले के कुल भू-भाग का 0.42 प्रतिशत भाग और राज्य के कुल वन क्षेत्र का 0.22 प्रतिशत भाग पर वन है।
    • राज्य में कुल प्रादेशिक मण्डलो की संख्या 42 है तथा वन मण्डल 13 हैं।
    • जोधपुर क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा वन मण्डल है।
    • उदयपुर राज्य का सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला वन मण्डल है।
    • राज्य वृक्ष खेजड़ी थार का कल्पवृक्ष कहलाता है। खेजड़ी राज्य में वन क्षेत्र के लगभग 65 प्रतिशत भाग में पाए जाते हैं।

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