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Wednesday, 30 August 2017

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं

राजस्थान की प्रमुख सिंचाई व नदी घाटी परियोजनाएं
  • राजस्थान में देश के कुल सतही जल का मात्र 1.16 प्रतिशत जल उपलब्ध है।
  • इंदिरा गांधी नहर राजस्थान की सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है।
  • बीसलपुर बांध राज्य की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है।
  • राज्य में न्यूनतम सिंचाई, सिंचित क्षेत्र के आधार पर चुरू में व राज्य के कुल सिंचित क्षेत्रफल के आधार पर राजसमंद जिले में तथा अधिकतम सिंचाई गंगानगर व हनुमानगढ़ में होती है।
  • राजस्थान में गेहूं की फसल का सिंचित क्षेत्र सर्वाधिक है। इसके पश्चात सरसों व कपास का स्थान आता है।
राजस्थान में सिंचाई के प्रमुख साधन (Major sources of irrigation in Rajasthan)

1. कुएं एवं नलकूप (Wells and Tubewells)
  • राज्य में कुओं एवं नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई (65.67 प्रतिशत) होती है।
  • कुओं एवं नलकूपों से सिंचाई जयपुर (सर्वाधिक), भरतपुर, अलवर, उदयपुर व अजमेर जिलों में होती है।
  • जैसलमेर के पूर्व में स्थित चन्दन नलकूप मीठे पानी का थार का घड़ा कहलाता है।
2. नहरें ( Canals) 
  • भारत में सर्वाधिक सिंचाई नहरों द्वारा लगभग 39 प्रतिशत भाग पर होती है।
  • राजस्थान में 32.84 प्रतिशत क्षेत्र पर नहरों द्वारा सिंचाई एवं 1.02 प्रतिशत क्षेत्र पर अन्य साधनों द्वारा सिंचाई होती है।
  • राज्य में नहरों द्वारा सिंचाई श्रीगंगानगर ( सर्वाधिक), हनुमानगढ़, जैसलमेर, भरतपुर, कोटा, बूंदी, बारां, सिरोही, डूंगरपुर, बांसवाड़ा व चुरू जिलों में होती है।
3. तालाब ( Ponds)
  • राजस्थान में तालाबों द्वारा 0.47 प्रतिशत सिंचाई होती है।
  • राजस्थान के दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी भागों में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है। 
  • भीलवाड़ा जिले में तालाबों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई होती है। उदयपुर, पाली, राजसमंद, चितौड़गढ़, कोटा, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बूंदी, टोंक आदि अन्य जिले है जहां तालाबों द्वारा सिंचाई होती है।
  • जैसलमेर में तालाबों के स्थान पर खड़ीन का उपयोग किया जाता है।
राजस्थान में बहुउद्देशीय परियोजनाएं (Multi purpose Projects in Rajasthan)

1. इन्दिरा गांधी नहर परियोजना (Indira Gandhi Canal Project) 
  • यह परियोजना विश्व की सबसे बड़ी (मानव निर्मित) सिंचाई परियोजना है।
  • इसे राजस्थान की मरू गंगा व जीवन रेखा भी कहा जाता है।
  • उद्गम स्थल- पंजाब में फिरोजपुर के निकट सतलज व व्यास नदियों के संगम पर बने हरिकै बैराज से।
  • इस परियोजना का शिलान्यास 20 मार्च,1958 को तत्कालीन गृहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने किया।
  • आरम्भ में यह परियोजना राजस्थान नहर परियोजना कहलाती थी, लेकिन 2 नवंबर,1984 को इसका नाम बदलकर इन्दिरा गांधी नहर परियोजना रख दिया गया।
  • इस परियोजना का सुझाव बीकानेर रियासत के तत्कालीन सिंचाई इंजीनियर श्री कंवर सेन ने 1948 में अपने अध्ययन बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकताएं में भारत सरकार को दिया था।
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना का मुख्य उद्देश्य रावी व व्यास नदियों के पानी को राजस्थान के पश्चिमी भाग में सिंचाई, पेयजल एवं अन्य उपयोग में लेने का है।
  • पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. डा. एस. राधाकृष्णन ने 11 अक्टूबर, 1961 को नौरंगदेसर वितरिका से सर्वप्रथम जल प्रवाहित कर मरू भूमि के विकास की शुरुआत की गई।
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में सर्वाधिक कमाण्ड क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर व बीकानेर जिले का है।
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के दो भाग हैं- राजस्थान फीडर व मुख्य नहर।
  • इस परियोजना को दो चरणों में बांटा गया है- 
प्रथम चरण
  • परियोजना के प्रथम चरण के अन्तर्गत 204 किमी. लम्बी राजस्थान फीडर नहर पंजाब के हरिकै बैराज से लेकर हनुमानगढ़ के पास मसीतावाली गांव तक बनाई गई।
  • राजस्थान फीडर नहर की 170 किमी. लम्बाई पंजाब व हरियाणा में तथा शेष 34 किमी. राजस्थान में हैं।
  • इसके अलावा 189 किमी. मुख्य नहर मसीतावाली से लेकर छतरगढ़ तक तथा 3109 किमी. वितरिकाओं का निर्माण प्रथम चरण में किया गया।
  • राजस्थान फीडर की गहराई 21 फीट व राजस्थान की सीमा पर फीडर के तले की चौड़ाई 134 फीट है।
  • प्रथम चरण का समस्त कार्य 1992 में पूर्ण हो चुका है।
द्वितीय चरण
  • परियोजना के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर (189 किमी. से 445 किमी. पूगल से जैसलमेर में मोहनगढ़ तक) तथा 5756 किमी. वितरिकाओं तथा 7 लिफ्ट नहरों के निर्माण का कार्य शामिल किया गया है।
  • द्वितीय चरण में वितरण प्रणाली की कुल प्रस्तावित लम्बाई 5959 किमी. है तथा कुल प्रस्तावित सिंचित क्षेत्र 14.10 हैक्टेयर है।
  • 256 किमी. मुख्य नहर का निर्माण कार्य दिसंबर,1986 में सम्पन्न हुआ।
  • 1 जनवरी, 1987 को मोहनगढ़ के समीप नहर के अंतिम छोर तक पानी पंहुच गया।
  • 1998 से इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के द्वितीय चरण के अन्तर्गत वनारोपण व चरागाह विकास कार्यक्रम OECF संस्था (जापान) के आर्थिक सहयोग से चलाया जा रहा है।
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना क्षेत्र में वृक्षारोपण कार्य के लिए वन सेना का गठन किया गया है।
 इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की लिफ्ट नहरें
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना में कुल 9 लिफ्ट नहरें है जिनमें से 7 पूर्णतः निर्मित, 1 निर्माणाधीन विजय 1 प्रस्तावित है।
  • मुख्य नहर से एक बार में पानी को 60 मीटर उठाने के लिए लिफ्ट नहरों का निर्माण किया गया है।
  1. बीकानेर-लूणकरणसर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- श्रीगंगानगर व बीकानेर। नवीन नाम- कंवर सेन लिफ्ट नहर। इसे बीकानेर की जीवन रेखा कहा जाता है। यह सबसे लंबी लिफ्ट नहर है।
  2. साहवा लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू व झुंझुनूं। नवीन नाम- चौधरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर। यह सहायक नहरों सहित सबसे लंबी लिफ्ट नहर है।
  3. गजनेर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर व नागौर। नवीन नाम- पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर।
  4. फलौदी लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर, जोधपुर व जैसलमेर। नवीन नाम- गुरु जम्भेश्वर (जाम्भौजी) लिफ्ट नहर।
  5. कोलायत लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर व जोधपुर। नवीन नाम- डॉ. करणी सिंह लिफ्ट नहर।
  6. पोकरण लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- जैसलमेर व जोधपुर। नवीन नाम- जयनारायण व्यास लिफ्ट नहर।
  7. बांगडसर लिफ्ट नहर- लाभान्वित जिले- बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर।
  • इन्दिरा गांधी नहर परियोजना की शाखाएं- रावतसर (हनुमानगढ़- इस परियोजना की पहली शाखा), शहीद बीरबल, पूगल, बिरसलपुर, दातोर (बीकानेर), सूरतगढ़ व अनूपगढ (श्रीगंगानगर), सागर मल गोपा, चारवण वाला (जैसलमेर)।
  • अत्यधिक जल प्लावन के कारण इन्दिरा गांधी नहर क्षेत्र में सेम (जल भराव) की समस्या उग्र रूप ले रही है जिसका उपचार भूमि में पर्याप्त मात्रा में जिप्सम का प्रयोग करना है।
  • इंडो-डच जल निकासी परियोजना- हनुमानगढ़ जिले में सेम से प्रभावित क्षेत्रों में जल निकासी हेतु नीदरलैंड के आर्थिक सहयोग से यह परियोजना चलाई जा रही है।
2. भाखड़ा नांगल परियोजना-
  • यह राजस्थान, पंजाब व हरियाणा राज्यों की संयुक्त परियोजना है।
  • इस परियोजना में हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी केवल जल विद्युत के उत्पादन में है।
  • भाखड़ा नांगल परियोजना में राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है।
  • यह परियोजना भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है।
  • इस परियोजना में सतलज नदी पर भाखड़ा व नांगल स्थानों पर दो बांध बनाए गए है-
  • 1.भाखड़ा बांध- सतलज नदी पर होशियारपुर जिले में भाखड़ा नामक स्थान पर इस बांध का निर्माण किया गया है।
  • यह बांध विश्व का दूसरा एवं एशिया का सबसे ऊंचा कंक्रीट निर्मित गुरुत्व सीधा बांध है।
  • इस बांध की आधारशिला 17 नवंबर, 1955 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी एवं इसका निर्माण अमेरिकी बांध निर्माता हार्वे स्लोकेम के निर्देशन में अक्टूबर, 1962 में पूर्ण हुआ।
  • यह भारत का सबसे ऊंचा (225.55 मीटर) बांध है।
  • भाखड़ा बांध के पीछे बिलासपुर(हिमाचल प्रदेश) बने विशाल जलाशय का नाम गोविन्द सागर है।
  • पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस बांध को 'एक चमत्कारी विराट वस्तु' एवं बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत के मंदिर कहा।
  • 2. नांगल बांध- यह बांध1952 में बनकर तैयार हो गया था। भाखड़ा बांध से 12 किमी. दूर नांगल (रोपड़,पंजाब) नामक स्थान पर स्थित है।
  • मुख्य नहरें- सरहिंद नहर, नरवाना नहर, विस्त दोआब नहर।
  • इस परियोजना से राजस्थान में सर्वाधिक सिंचाई हनुमानगढ़ जिले में होती है।
  • इस परियोजना के अंतर्गत कोटड़ा, गंगुवाल व रोपड़ नामक स्थानों पर तीन विद्युत गृह स्थापित किए गए हैं।
 3. माही बजाज सागर परियोजना-
  • यह राजस्थान व गुजरात की संयुक्त परियोजना है।
  • इस योजना से राज्य के दक्षिणी ज़िलों (मुख्यत: डूंगरपुर बांसवाड़ा) में पेयजल एवं सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
  • इस परियोजना के निर्माण के लिए दोनों राज्यों के बीच 1966 में एक समझौता हुआ।
  • इस परियोजना में राजस्थान का 45 प्रतिशत तथा गुजरात का 55 प्रतिशत हिस्सा है।
  • इस परियोजना से सर्वाधिक लाभान्वित जिला बांसवाड़ा है।
  • माही बजाज सागर बांध बांसवाड़ा के बांदरखेड़ा नामक स्थान पर निर्मित 3109 मीटर लंबा बांध है। जिसे 1983 में बनाया गया।
  • परियोजना के द्वितीय चरण में कागदी पिकअप बांध का निर्माण किया गया।
  • गुजरात में माही नदी पर कडाना बांध बनाया गया है।
  • इस परियोजना में दो विद्युत इकाईयों का निर्माण किया गया है। इन इकाइयों की विद्युत उत्पादन क्षमता 140 मेगावाट है।
  • इस परियोजना द्वारा उत्पादित सम्पूर्ण विद्युत राजस्थान को मिलती है।
 4. व्यास परियोजना-
  • सतलज, रावी व व्यास नदियों के पानी का उपयोग करने हेतु पंजाब, हरियाणा व राजस्थान की सम्मिलित परियोजना है।
  • इस परियोजना में व्यास नदी पर हिमाचल प्रदेश में दो बांध बनाए गए हैं- 1. पंडोह बांध- इस बांध से व्यास सतलज लिंक परियोजना हेतु लिंक नहर निकाली गई है। 2.पोंग बांध- राजस्थान में रावी व्यास नदियों के पानी में अपने हिस्से का सर्वाधिक पानी इसी बांध से प्राप्त होता है।पोंग बांध का मुख्य उद्देश्य इन्दिरा गांधी नहर परियोजना को शीतकाल में जल की आपूर्ति करना है।
  • इस परियोजना के अन्तर्गत देहर में 990 मेगावाट तथा पोंग में 384 मेगावाट के विद्युत गृह स्थापित किए गए हैं। इनसे राजस्थान को क्रमशः 20 प्रतिशत तथा 59 प्रतिशत विद्युत प्राप्त होगी।
  • रावी- व्यास जल विवाद- राजीव गांधी लोंगोवाल समझौते के तहत रावी-व्यास नदी जल-विवाद का हल निकालने के लिए 26 जनवरी, 1986 को भारत सरकार ने इराडी आयोग का गठन किया जिससे राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ फुट पानी निर्धारित किया गया।
  • भारत व पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए जिसमें भारत को रावी, व्यास व सतलज नदियों का पूरा पानी उपयोग में लेने का अधिकार प्राप्त हुआ।
  • अन्तर्राज्यीय जल समझौता 1955- राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं पंजाब राज्यों के बीच रावी-व्यास पानी के विभाजन के संबंध में समझौता हुआ। राजस्थान को 5.5 MAF (55 लाख एकड़ फुट) पानी प्राप्त हुआ।
5. सिद्धमुख-नोहर सिंचाई परियोजना-
  • यूरोपियन आर्थिक समुदाय के आर्थिक सहयोग से प्रारंभ इस परियोजना का शिलान्यास 5 अक्टूबर, 1989 को राजीव गांधी द्वारा भिरानी गांव के समीप किया गया।
  • इस परियोजना से हनुमानगढ़ जिले की नोहर व भादरा तहसील तथा चुरू जिले की राजगढ़ व तारानगर तहसीलों के कुल 113 गांवों में सिंचाई की जा रही है।
  • पोकरण में परमाणु परीक्षण के बाद 1998 में यूरोपियन आर्थिक समुदाय की सहायता पर रोक लगाने के बाद इस परियोजना का संचालन 1999 में नाबार्ड के सहयोग से पुनः प्रारंभ किया गया।
  • इस परियोजना का लोकार्पण 12 जुलाई, 2002 को सोनिया गांधी द्वारा किया गया तथा परियोजना का नाम बदलकर राजीव गांधी सिद्धमुख-नोहर परियोजना कर दिया गया।
6. नर्मदा परियोजना-
  • नर्मदा बांध परियोजना मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान की सम्मिलित परियोजना है।
  • इस परियोजना में सिंचाई केवल स्प्रिंकलर (फव्वारा) सिंचाई पद्धति द्वारा करने का प्रावधान है।
  • इस परियोजना से जालौर व बाड़मेर जिलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध होगी।
  • नर्मदा जल विकास प्राधिकरण द्वारा नर्मदा जल में राजस्थान की हिस्सेदारी 0.50MAF निर्धारित की गई है। इस जल के उपयोग के लिए गुजरात के सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर निकाली गई है जो 458 किमी. गुजरात में और राजस्थान में 74 किमी. लम्बी है।
  • इस नहर का पानी राजस्थान के जालौर जिले की सांचौर तहसील के सीलू गांव के समीप बने जीरो प्वाइंट तक 18 मार्च,2008 को पहुंच गया था।
  • राजस्थान इस परियोजना की प्रथम इकाई पर कुल लागत का 2.31 प्रतिशत तथा द्वितीय इकाई की कुल लागत का 11 प्रतिशत भाग वहन करेगा।
7. बीसलपुर परियोजना-
  • इस परियोजना में बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे से 13 किलोमीटर दूर बीसलपुर गांव के पास बीसलपुर बांध बनाया गया है।
  • यह एक कंक्रीट बांध है।
  • 1988-89 में शुरू की गई यह परियोजना राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना है।
  • इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य जयपुर, अजमेर, टोंक, ब्यावर, किशनगढ़, केकड़ी एवं रास्ते में आने वाले शहरों, कस्बों एवं गांवों को पेयजल उपलब्ध करवाना व टोंक जिले में 81,800 हैक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाना है।
  • बीसलपुर परियोजना के लिए नाबार्ड के ग्रामीण आधारभूत विकास कोष (RIDF) से आर्थिक सहायता प्राप्त हो रही है।
8. जाखम परियोजना-
  • इस परियोजना का शुभारंभ 1962 में प्रतापगढ़ में छोटी सादड़ी के निकट अनूपपूरा गांव में जाखम नदी पर जाखम बांध बनाकर किया गया।
  • यह बांध राजस्थान का सबसे ऊंचा बांध है जिसकी ऊंचाई 81 मीटर है।
  • इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य धरियावद और प्रतापगढ़ के गांवों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवाना है।
  • जाखम बांध से 13 किलोमीटर दूर नागरिया गांव में एक पिकअप बांध बनाकर दायें व बायें किनारों से दो नहरें निकाली गई है।
  • इस परियोजना का निर्माण कार्य जनजाति उपयोजना के अन्तर्गत किया गया है।
  • मुख्य बांध पर 4.5 मेगावाट जल विद्युत बनाने की दो इकाइयां स्थापित की गई है जिनसे 9 मेगावाट बिजली पैदा होती है।
9. चम्बल परियोजना-
  • चम्बल राजस्थान की सबसे बड़ी व निरन्तर बहने वाली नदी है। केन्द्रीय जल शक्ति व नौकायन आयोग ने 1950 में इस परियोजना को अन्तिम रूप दिया।
10.ईसरदा बांध-
  • बनास नदी पर सवाईमाधोपुर जिले के ईसरदा गांव में यह बांध बनाया गया है जिससे जयपुर, टोंक और सवाईमाधोपुर जिलों को पेयजल तथा सवाईमाधोपुर जिले को सिंचाई सुविधा उपलब्ध होती है।
11. पांचना बांध-
  • इस परियोजना में करौली के समीप भद्रावती, बरखेड़ा,अटा, भैसावट तथा माची (पांच नदियों) के संगम पर पांचना बांध बनाया गया है।
  • यह बालू मिट्टी से बना राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।
  • इसका निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया है।
  • यह बांध भरतपुर, धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर जिलों में सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराता है।
12. सोम-कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना-
  • इस परियोजना का निर्माण डूंगरपुर जिले में किया गया है और इसका प्रमुख उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाना है।
13. बिलास सिंचाई परियोजना-
  • कोटा जिले में मानगढ़ गांव के पास बिलास नदी पर मिट्टी से बना बांध।
14. छापी सिंचाई परियोजना- 
  • यह परियोजना झालावाड़ जिले की महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है।
  • यह झालावाड़ जिले की अकलेरा तहसील के दल्हनपुर गांव के पास परवन नदी की सहायक नदी छापी नदी पर स्थित परियोजना है।
15. पीपलदा लिफ्ट सिंचाई परियोजना-
  • इस परियोजना से सवाईमाधोपुर जिले में चम्बल नदी पर बांध बनाकर सवाईमाधोपुर जिले की खण्डार तहसील को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
16. जवाई बांध परियोजना-
  • इस बांध का निर्माण लूनी नदी की सहायक नदी जवाई नदी पर 1956 में किया गया है।
  • यह बांध पाली जिले एरिनपुरा रेलवे स्टेशन के पास स्थित है।
  • जवाई बांध मारवाड़ का अमृत सरोवर कहलाता है।
  • इस बांध से जोधपुर व पाली जिलों को पेयजल आपूर्ति की जाती है।
  • सेई परियोजना के अंतर्गत जवाई बांध में पानी की आवक बढ़ाने हेतु राजस्थान सरकार ने उदयपुर जिले की कोटड़ा तहसील में सेई बांध बनाकर एक सुरंग के माध्यम से इसका जल जवाई बांध में मिलाने का कार्य प्रारंभ किया।
  • जवाई बांध से जालौर व पाली जिले के 41 हजार हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है।
17. अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाएं-
  • धौलपुर जिले में पार्वती नदी पर 1959 में बांध बनाया गया।
  • ओरई परियोजना- चितौड़गढ़ जिले में भोपालपुरा गांव के समीप ओरई नदी पर यह बांध बनाया गया है तथा इससे चितौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिलों में सिंचाई का लाभ मिलेगा।
  • नाकोड़ा बांध लूनी नदी पर बनाया गया।
  • अजान बांध भरतपुर जिले में गम्भीरी नदी पर बनाया गया है।
  • मोरेल बांध- मोरेल नदी पर जस्टाना कस्बे के निकट सवाईमाधोपुर जिले में यह बांध बनाया गया है।
  • परवन लिफ्ट व सावन भादो परियोजना कोटा जिले में स्थित है।
  • मानसी वाकल परियोजना- इस परियोजना के निर्माण में 70 प्रतिशत राजस्थान सरकार व 30 प्रतिशत हिन्दूस्तान जिंक लिमिटेड का योगदान रहेगा। इस परियोजना के तहत उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के गोराणा गांव में मानसी वाकल बांध का निर्माण किया गया है।
  • पार्वती जल विद्युत परियोजना- यह राजस्थान व हिमाचल प्रदेश दोनों राज्यों की संयुक्त परियोजना है।
  • मेजा बांध- 1972 में भीलवाड़ा जिले के मांडलगढ़ कस्बे के निकट कोठारी नदी पर निर्मित बांध। इस बांध की पाल पर 'ग्रीन मांउट' नामक पार्क विकसित किया गया है।
  • बंध बरेठा बांध- 1897 में महाराजा रामसिंह के समय भरतपुर जिले की बयाना तहसील में कुंकन्द नदी को दो पहाड़ों के बीच रोककर यह बांध बनाया गया है। यह भरतपुर जिले का सबसे बड़ा बांध है तथा इस बांध से भरतपुर शहर को पेयजल आपूर्ति की जाती है।
  • उम्मेद सागर बांध- भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
  • गरदड़ा बांध- बूंदी जिले में स्थित बांध।
  • पश्चिमी बनास योजना- सिरोही जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना।
राजस्थान की प्रमुख नहरें
1. गंगनहर-
  • यह राजस्थान की पहली सिंचाई परियोजना मानी जाती है।
  • बीकानेर रियासत में महाराजा गंगा सिंह के शासन काल में 1922-27 की अवधि में गंगनहर का निर्माण हुआ।
  • गंगनहर सतलज नदी से फिरोजपुर, पंजाब के निकट हुसैनीवाला से निकाली गई है।
  • इस नहर से इन्दिरा गांधी फीडर तथा गंगनहर के बीच गंगनहर लिंक चैनल निकाली गई है।
  • इस नहर ने गंगानगर जिले के शुष्क भागों को फलों के उद्यान व खाद्यान्न भण्डार में बदल दिया है।
2. गुड़गांव नहर-
  • इस नहर के निर्माण का उद्देश्य यमुना नदी के पानी का मानसून काल में उपयोग लेना है।
  • आखेला (दिल्ली) के पास यमुना नदी से यह नहर निकाली गई है।
  • यह नहर भरतपुर जिले की कांमा तहसील के जुरेरा गांव के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है।
  • राजस्थान में इस नहर की लम्बाई 35 मील है।
  • इस नहर से भरतपुर जिले की कांमा व डीग तहसील में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।

Friday, 25 August 2017

राजस्थान में झीलें (Lakes of Rajasthan)





राजस्थान की झीलें (Lakes of Rajasthan)
  • राजस्थान में झीलों का पर्यटन, सिंचाई,लवण उत्पादन, मत्स्य पालन, जलवायु समीकरण एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है।
  • राजस्थान में झीलें दो प्रकार की पाई जाती है- 1. खारे पानी की झीलें व 2. मीठे पानी की झीलें।
खारे पानी की झीलें
  • टेथिस सागर के अवशेष आज भी सांभर, डीडवाना, पंचपदरा आदि खारे पानी की झीलों के रूप में विद्यमान है।
  • राजस्थान में खारे पानी की झीलें मुख्यत: उत्तरी- पश्चिमी मरूस्थलीय भाग में पाई जाती है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक खारे पानी की झीलें नागौर जिले में स्थित है।
  • राजस्थान की झीलों में नमक अधिक मात्रा में पाये जाने का कारण यहां ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली दक्षिणी- पश्चिमी मानसूनी हवाएं है। जो अपने साथ कच्छ की खाड़ी से सोडियम क्लोराइड के कणों को राजस्थान की ओर लाती है।
  • भूमिगत जल से लवण निर्माण में राजस्थान का देश में पहला स्थान है।
सांभर झील (जयपुर)
  • भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी यह झील जयपुर से 65 किमी. दूर फुलेरा के पास स्थित है।
  • जयपुर, नागौर व अजमेर तीन जिलों में सांभर झील का फैलाव है।
  • सांभर झील का प्रवाह क्षेत्रफल 5702 वर्ग किमी. है।
  • भारत के कुल नमक उत्पादन का 8.70% यहीं से उत्पादित होता है।
  • इस झील में खारी, मन्था,रुपनगढ़, खंडेला, मेढ़ा व सामोद नदियां आकर गिरती है।
  • इस झील के नमक में सोडियम क्लोराइड की मात्रा अधिक है, इसलिए यहां सोडियम सल्फेट संयंत्र की स्थापना हिन्दुस्तान साल्ट लिमिटेड की सहायक कंपनी सांभर साल्ट द्वारा की गई है।
  • सांभर झील को पर्यटन के क्षेत्र में रामसर साईट के नाम से जाना जाता है।
  • स्वेडाफ्रूटी व सालवेडोरा स्पीसीज नामक वनस्पति सांभर के जल में से खारेपन की मात्रा को कम करने में सहायक है।
 डीडवाना झील (नागौर)
  • यह नागौर जिले में डीडवाना नगर के निकट 4 किमी. लम्बी व 3-6 किमी. चौड़ी झील है।
  • इस झील का नमक खाने योग्य नहीं है।
  • यहां 1960 में राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स नाम से दो उद्योग स्थापित किए गए हैं, जो सोडियम सल्फाइड एवं सोडियम सल्फेट का उत्पादन करते हैं। इस सोडियम का उपयोग कागज बनाने में किया जाता है।
  • ब्राईन- नमक बनाने के लिए क्यारियों में भरा गया लवणीय पानी जिसे सुखाकर नमक प्राप्त किया जाता है।
पचपदरा झील (बाड़मेर)
  • यह झील बाड़मेर जिले में पंचपदरा नगर के पास स्थित है।
  • पंचा नामक भील द्वारा दलदल को सूखाकर इस झील का निर्माण किया गया था।
  • यहां पर खारापन जाति के लोगों द्वारा मोरली झाड़ी की टहनियों का उपयोग कर नमक के स्फटिक बनाये जाते हैं।
  • यह नमक उत्तम किस्म का होता है जिसमें 98% सोडियम क्लोराइड की मात्रा पाई जाती है।
रैवासा झील (सीकर)
  • यह झील सीकर जिले में स्थित है।
  • इस झील को प्राचीन काल में नमक उत्पादन में सम्पूर्ण एशिया में जाना जाता था।
  • राजस्थान का इतिहास लिखने वाले लेखक कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक एंटीक्यूटीज आफ राजस्थान में रैवासा झील का उल्लेख किया है।
 अन्य खारे पानी की झीलें-
  • लूणकरणसर झील- बीकानेर में स्थित है।
  • फलौदी झील- जोधपुर में स्थित है।
  • कावोद झील- जैसलमेर में स्थित है।
  • तालछापर झील- चुरू में स्थित है।
मीठे पानी की झीलें 

जयसमंद(ढेबर) झील, उदयपुर
  • मेवाड़ के गहलोत वंश के शासक महाराजा जयसिंह ने सन् 1685 से 1691 ई. में उदयपुर शहर से लगभग 51 किमी. दक्षिण-पूर्व में गोमती नदी पर बांध बनवाकर जयसमंद झील का निर्माण करवाया गया।
  • राजस्थान की सबसे बड़ी कृत्रिम, मीठे पानी की झील है।
  • यह भारत की दूसरी सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।(भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील गोविंद सागर, भाखड़ा है।)
  • इसको ढेबर झील भी कहा जाता है।
  • इस झील के क्षेत्र में 7 छोटे-बड़े टापू है जिन पर भील व मीणा जाति के लोग रहते हैं।
  • बाबा का भांगड़ा इस झील का सबसे बड़ा टापू है और प्यारी सबसे छोटा टापू है।
  • इस झील में एक टापू पर आइसलैंड रिसोर्ट नामक होटल बनाया गया है।
  • जयसमंद झील के निकट एक पहाड़ी पर चित्रित हवामहल स्थित है।
  • इस झील के पास ही रुठी रानी का महल है।
राजसमंद झील
  • इस झील का निर्माण सन् 1962 में महाराजा राजसिंह द्वारा गोमती नदी पर करवाया गया जो 1676 ई. में पूर्ण हुआ।
  • यह झील 6.5 किलोमीटर लंबी एवं 3 किलोमीटर चौड़ी है।
  • यह राज्य की एकमात्र ऐसी झील है जिस पर किसी जिले का नामकरण हुआ है।
  • इस झील का उत्तरी भाग नौ चौकी की पाल के नाम से प्रसिद्ध है। जहां संगमरमर के 25 शिलालेखों पर 1917 संस्कृत के श्लोकों में रणछोड़ भट्ट द्वारा मेवाड़ का इतिहास अंकित है।
  • यह विश्व की सबसे बड़ी राजप्रशस्ति है जिस पर मेवाड़ के शासकों का वर्णन है।
  • इस झील के किनारे घेवर माता का मंदिर स्थित है।
पिछोला झील (उदयपुर)
  • इस झील का निर्माण राणा लाखा के शासक काल में 14वीं शताब्दी के अंत में पिछोला गांव में एक बंजारे ने करवाया।
  • इस झील का जीर्णोद्धार राणा उदय सिंह ने करवाया।
  • सिटी पैलेस/राजमहल का निर्माण महाराणा उदय सिंह ने पिछोला झील के किनारे करवाया।
  • इस झील पर निर्मित बांध का पुनर्निर्माण राणा भीमसिंह ने 1795 ई. में करवाया।
  • शाहजहां ने जहांगीर के खिलाफ विद्रोह के दौरान यहां स्थित महलों में शरण ली थी।
  • हल्दी घाटी के युद्ध से पूर्व मानसिंह और राणा प्रताप की मुलाकात पिछोला झील की पाल पर हुई थी।
  • ब्रिटिश इतिहासकार फर्ग्यूसन ने पिछोला झील की तुलना लंदन के विशाल विण्डसर महल से की है।
  • पिछोला झील को जलापूर्ति बुझड़ा एवं सीसारमा नदियों द्वारा होती हैं।
  • इस झील को वर्तमान में स्वरुप सागर झील की सहायता से फतहसागर झील से जोड़ा गया है।
  • पिछोला झील में दो टापुओं पर जग मंदिर और जग निवास महल बने हुए हैं। वर्तमान में ये दोनों राजस्थान पर्यटन विकास निगम के अधीन है तथा इन्हें होटल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।
फतहसागर झील (उदयपुर)
  • इस झील का निर्माण महाराणा जयसिंह सन् 1978 ई. में करवाया।
  • अतिवृष्टि के कारण तहस-नहस हो जाने पर इसका पुनर्निर्माण महाराणा फतह सिंह द्वारा करवाए जाने के कारण यह फतहसागर झील कहलाई।
  • फतहसागर झील पर स्थित बांध की आधारशिला ड्यूक ऑफ कनाट ने रखी, जिस कारण यह बांध कनाट बांध कहलाया।
  • फतहसागर झील के मध्य में स्थित एक टापू पर नेहरू आइलैंड स्थित है।
  • सन् 1975 ई. में सौर वेधशाला की स्थापना इस झील में स्थित एक टापू पर की गई।
  • फतहसागर झील के नीचे सहेलियों की बाड़ी बाग स्थित है।
  • इस झील के किनारे स्थित मोती-मगरी पहाड़ी को महाराणा प्रताप स्मारक के रूप में विकसित किया गया है।
  • फतहसागर झील के दूसरे किनारे 1989 में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर द्वारा हलाला गांव में ग्रामीण शिल्प एवं लोक कला परिसर शिल्पग्राम का सृजन किया गया है।
आनासागर झील (अजमेर)
  • अर्णोराज (अन्नाजी) ने सन् 1137 ई. में इस झील का निर्माण करवाया।
  • झील के किनारे मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा निर्मित दौलत बाग को वर्तमान में सुभाष उद्यान कहते है।
  • इस झील पर शाहजहां ने बारहदरी (बारह दरवाजे) में से संगमरमर के पांच दर का निर्माण करवाया।
 फायसागर झील (अजमेर)
  • इंजीनियर फाय के निर्देशन में बांडी नदी पर बांध बनाकर अकाल राहत कार्यों के तहत इस झील का निर्माण सन् 1891-92 के दौरान करवाया गया।
  • इस झील में जलस्तर अधिक होने पर इसका जल आनासागर में भेज दिया जाता है।
 पुष्कर झील (अजमेर)
  • अजमेर से 13 किलोमीटर दूर पुष्कर में स्थित यह झील तीन ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई है।
  • इस झील के किनारे ब्रह्माजी का मंदिर स्थित है।
  • गोकुल चन्द पारीक ने सन् 1752 ई. में ब्रह्माजी मंदिर को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया।
  • राजा मानसिंह प्रथम द्वारा पुष्कर झील के किनारे मानमहल का निर्माण करवाया।
  • पुष्कर झील के किनारे स्थित 52 घाटो में से सबसे बड़ा घाट, गांधी घाट है, जिसे जनाना/महिला घाट भी कहा जाता है। इसका निर्माण मैडम मैरी द्वारा करवाया गया।
  • इंग्लैंड की महारानी मैडम मैरी 1911 ई. पुष्कर झील देखने आई।
  • प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को यहां विशाल पशु मेला भरता है।
 नक्की झील (मांउट आबू, सिरोही)
  • यह मांउट आबू (सिरोही) में स्थित राजस्थान की सबसे ऊंची (1200 मीटर) झील है।
  • टाड राक (चट्टान) जो वास्तविक मेंढ़क की तरह लगती है, इस झील के किनारे स्थित है।
  • नक्की झील के किनारे स्थित घुंघट निकाली स्त्री के आकार की चट्टान जिसे नन राक कहा जाता है।
  • इस झील के किनारे माउंट आबू पर्वत पर हाथी, चम्पा और राम झरोखा नामक गुफाएं स्थित है।
  • रघुनाथ जी का मंदिर इस झील के किनारे स्थित है।
सिलीसेढ़ झील (अलवर)
  • यह झील अलवर से 12 किमी. दूरी पर 10.5 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में विस्तृत है।
  • यहां पर अलवर के महाराजा विनयसिंह ने सन् 1845 में अपनी रानी शीला के लिए एक अद्भुत शाही महल व शिकारी लाज बनवाया था।
बालसमंद झील (जोधपुर)
  • इस झील का निर्माण सन् 1159 में परिहार शासक बालक राव द्वारा करवाया गया।
  • इसकी लम्बाई 1 किलोमीटर तथा चौड़ाई 150 फीट है।
कायलाना झील (जोधपुर)
  • जोधपुर के पश्चिम में स्थित इस झील का निर्माण 1872 में सर प्रताप ने करवाया।
  • यह झील जोधपुर शहर को पेयजल की आपूर्ति करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
कोलायत झील (बीकानेर)
  • जनश्रुति के अनुसार यहां कपिल मुनि का आश्रम था।
  • इस झील के किनारे प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है।
 अन्य महत्वपूर्ण झीलें-
  •  उदयसागर झील- उदयपुर में स्थित इस झील का निर्माण आयड़ नदी के पानी से होता है।
  • भोपाल सागर झील- चितौड़गढ़ में स्थित इस झील का निर्माण भोपाल सिंह ने करवाया।
  • जैतसागर झील- बूंदी में स्थित इस झील का निर्माण जैता मीणा ने करवाया।
  • नंदसमंद झील- इस को राजसमंद की जीवन रेखा कहा जाता है।
  • मोती झील- इस झील को भरतपुर की जीवन रेखा कहा जाता है।
  • सावन भादो झील- यह झील अचलगढ़ (सिरोही) में स्थित है।
  • तलवाड़ा झील- हनुमानगढ़ में स्थित यह झील घग्घर नदी के जल से भरती है।
  • गैब सागर झील- डूंगरपुर में स्थित है।
  • नवलखा झील- बूंदी में स्थित है।
  • घड़ीसर/गड़ीसर झील- यह झील जैसलमेर में स्थित है। इस झील का निर्माण रावल घड़सिंह अथवा घरसी द्वारा करवाया गया।
  • मानसरोवर एवं काडिला झील- झालावाड़ में स्थित ये झीलें असनावर के निकट मुकुन्दरा पर्वत श्रेणी में स्थित है। इन झीलों के जल का उपयोग मुख्यत: सिंचाई के लिए किया जाता है।

Sunday, 20 August 2017

राजस्थान की नदियां (Rivers of Rajasthan)

राजस्थान की नदियां (Rivers of Rajasthan)
  • राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भाग पर आंतरिक प्रवाह प्रणाली पायी जाती है।
  • चुरू और बीकानेर ऐसे दो जिले है जहां कोई नदी नहीं बहती है।
  • राज्य में केवल चम्बल तथा माही बारहमासी नदियां हैं।
  • सर्वाधिक जिलों में बहने वाली नदियां चम्बल, बनास लूनी है जो छः जिलों में बहती हैं।
  • राजस्थान की नदियों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है- (1) बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां- चम्बल, बनास, बेड़च, बाणगंगा, कोठारी, कालीसिंध, खारी, गम्भीरी, पार्वती। (2) अरब सागर में गिरने वाली नदियां- माही, सोम, जाखम, लूनी, साबरमती, सूकड़ी। (3) आन्तरिक प्रवाह की नदियां- घग्घर, कान्तली, काकनी, साबी, मंथा।
1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां

चम्बल
  • उपनाम- चर्मण्वती, कामधेनु तथा नित्यवाही नदी।
  • उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के महु के दक्षिण में मानपुर के समीप जनापाव पहाड़ी (विंध्याचल पर्वत) से निकलती हैं।
  • यह चौरासीगढ़ (चितौड़गढ़) के समीप राजस्थान में प्रवेश करती हैं।
  • आगरा (उत्तरप्रदेश) के इटावा के निकट मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना में मिल जाती हैं।
  • इस नदी की कुल लम्बाई 966 किमी. है जिसमें से 135 किमी. राजस्थान में हैं।
  • यह राज्य में अपवाह क्षेत्र (19,500 किमी.) के अनुसार बहने वाली, सबसे अधिक लम्बी नदी है। जो राजस्थान के साथ सबसे अधिक लम्बी अन्तर्राज्यीय सीमा बनाती हैं।
  • चूलिया जल प्रपात- भैंसरोड़गढ़ (चितौड़गढ़) के समीप चम्बल में सर्वप्रथम बामनी नदी आकर गिरती है जहां पर चूलिया जल प्रपात (ऊंचाई 18 मीटर) स्थित है।
  • केशोरायपाटन (बूंदी) के पास इसका पाट अधिकतम एवं गहराई भी अधिक है।
  • रामेश्वरम (सवाई माधोपुर) स्थान पर चम्बल नदी के बाएं किनारे पर बनास और सीप नदियों का संगम होता है जो त्रिवेणी संगम कहलाता है।
  • यह राजस्थान की बारहमासी नदी है एवं इससे सर्वाधिक अवनालिका अपरदन होता है।
  • इस नदी पर मध्यप्रदेश में गांधी सागर बांध, चितौड़गढ़ में राणा प्रतापसागर बांध, कोटा में जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज/कोटा बांध स्थित है जो जल विद्युत और सिंचाई के मुख्य स्त्रोत हैं।
  • राज्य को सर्वाधिक सतही जल चम्बल नदी से प्राप्त होता है।
  • यह नदी चितौड़गढ़, कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, करौली और धौलपुर जिलों में प्रवाहित होती हैं।
चम्बल की सहायक नदियां- 
  • चम्बल दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर बहने वाली राजस्थान की सबसे प्रमुख व एकमात्र नदी है जिसकी सर्वाधिक सहायक नदियां हैं।
  • मध्यप्रदेश में मिलने वाली नदियां-  सीवान, रेटम व शिप्रा।
  • बामनी (ब्राह्मणी) - यह चितौड़गढ़ जिले के हरिपुरा गांव की पहाड़ियों से निकलती हैं तथा भैंसरोड़गढ़ के समीप चम्बल नदी में मिल जाती हैं।
  • गुजाली- यह मध्यप्रदेश के जाट गांव के पास से निकलकर चितौड़गढ़ के अरनिया गांव के पास चम्बल में मिल जाती हैं।
  • ईज नदी- भैंसरोड़गढ़ से निकलकर डाबी स्थान पर चम्बल में मिल जाती हैं।
  • मेज नदी- भीलवाड़ा जिले से निकलकर बूंदी में बहती हुई सीनपुर के निकट चम्बल में मिल जाती हैं।
  • चाकण नदी- यह बूंदी में कई छोटे-छोटे नालों से मिलकर बनती है जो सवाईमाधोपुर के करनपुरा गांव में चम्बल में मिल जाती हैं। जिस पर नैनवा (बूंदी) में चाकण बांध बना हुआ है।
  • अन्य सहायक नदियां- बनास, कालीसिंध, छोटी कालीसिंध, पार्वती, कुराल, परवन, निमाज आदि।
बनास नदी
  • उपनाम- वन की आशा, वर्णनाशा व वशिष्टी।
  • उद्गम स्थल- खमनौर की पहाड़ियां (कुम्भलगढ़), राजसमंद।
  • कुल लम्बाई- 480 किमी.।
  • यह नदी राजसमंद, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक तथा सवाईमाधोपुर जिलों में बहती हुई सवाईमाधोपुर जिले के रामेश्वरम नामक स्थान पर चम्बल में मिल जाती है।
  • बनास नदी टोंक जिले में सर्पाकार बहती हैं।
  • त्रिवेणी संगम- बीगोद और मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के बीच बनास,बेड़च,मेनाल नदियों का संगम होता है।
 सहायक नदियां-
  • टोंक जिले में देवली नामक स्थान पर बनास नदी में खारी नदी आकर गिरती हैं।
  • मेनाल नदी मांडलगढ़ की पहाड़ियों (भीलवाड़ा) से निकलती है।
  • मोरेल नदी का उद्गम स्थल चाकसू (जयपुर) से होता है। जयपुर व सवाईमाधोपुर की सीमा पर बहते हुए खण्डार के पास बनास नदी में मिल जाती है। मोरेल नदी की सहायक नदी ढूंढ है।
  • बीसलपुर बांध- बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह तहसील के बीसलपुर गांव में इस बांध का निर्माण विग्रहराज चतुर्थ ने करवाया। पेयजल की दृष्टि से बीसलपुर बांध राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है।
  • यह नदी पूर्णतः राजस्थान में बहने वाली सबसे लंबी नदी है।
  • अन्य सहायक नदियां- कोठारी, खारी,बेड़च, मेनाल,माशी व मोरेल।
कोठारी नदी
  • उद्गम स्थल- दिवेर की पहाड़ियां (कुम्भलगढ़, राजसमंद)।
  • समापन- भीलवाड़ा में बनास नदी में।
  • इस नदी पर मेजा बांध बनाकर भीलवाड़ा जिले की पेयजल समस्या का समाधान करने का प्रयास किया गया है।
बेड़च नदी
  • उद्गम स्थल- गोगुंदा की पहाड़ियां (उदयपुर)।
  • यह नदी अपने उद्गम स्थल से उदयसागर झील तक आयड़ नदी के नाम से जानी जाती है उदयसागर से निकलने के बाद यह नदी बेड़च के नाम से जानी जाती हैं।
  • यह नदी मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के निकट बिगोद नामक स्थान पर बनास में मिल जाती है।
  • बेड़च नदी के किनारे आयड़ (ताम्रयुगीन) सभ्यता मिली है।
कालीसिंध नदी
  • उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के देवास जिले के बागली गांव से।
  • इस नदी का राजस्थान में प्रवेश झालावाड़ में एवं समापन कोटा के नौनेरा नामक स्थान पर चम्बल नदी में मिलने से होता है।
  • यह नदी राज्य में झालावाड़, कोटा एवं बारां की सीमा बनाती है।
  • गागरोन का किला आहू व कालीसिंध नदियों के संगम पर स्थित है।
  • सहायक नदियां-
  • आहू नदी- यह मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले की महिन्दपुर तहसील से निकलकर झालावाड़ की पश्चिमी दिशा से नंदपुर में प्रवेश करती है। गागरोन के पास कालीसिंध में मिल जाती है।इसकी सहायता नदियां क्यासरी व पिपलाज है।
  • सामेला- आहू व कालीसिंध नदियों का संगम स्थल।
  • अन्य सहायक नदियां- रेवा व परवन है।
पार्वती नदी
  • उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश के विंध्याचल पर्वत की सिहोर की पहाड़ियां।
  • पार्वती बांध- धौलपुर जिले में पार्वती नदी पर निर्मित बांध।
  • करियाहट (बारां) में राजस्थान में प्रवेश करती है।
  • समापन- कोटा जिले में चम्बल नदी में मिल जाती है।
बाणगंगा नदी
  • उद्गम स्थल- जयपुर जिले की बैराठ की पहाड़ियों से।
  • उपनाम- अर्जुन की गंगा, तालाबंदी।
  • समापन- आगरा के फतेहाबाद नामक स्थान पर यमुना नदी में मिल जाने पर। इस नदी पर जमवारामगढ़ (जयपुर) में रामगढ़ बांध बनाया गया है जिससे जयपुर को पेयजल की आपूर्ति होती है।
  • बाणगंगा नदी कभी-कभी आन्तरिक प्रवाह प्रणाली का उदाहरण पेश करती है क्योंकि इसका पानी भी यमुना तक नहीं पहुंचती है और भरतपुर के आसपास के मैदानों में फैल जाता है। बाणगंगा चम्बल की रुण्डित नदी है।
खारी नदी
  • उद्गम स्थल- राजसमंद के बिजराल गांव की पहाड़ियों से।
  • समापन- टोंक जिले के देवली नामक स्थान पर बनास में मिल जाती है।
  • भीलवाड़ा जिले की शाहपुरा तहसील में मानसी नदी खारी नदी में मिलती है। मानसी नदी भीलवाड़ा जिले की मांडल तहसील से निकलती है। यह नदी राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर तथा टोंक जिले में प्रवाहित होती है।
गम्भीरी नदी
  • इस नदी पर निम्बाहेड़ा (चितौड़गढ़) में गम्भीरी बांध बनाया गया है।
  • समापन- चितौड़गढ़ के चटियावली नामक स्थान पर बेड़च में।
सोहदरा नदी
  • उद्गम स्थल- अजमेर जिले के दक्षिण में स्थित अराय गांव की पहाड़ियों से।
  • समापन- टोंक जिले में दूदिया गांव के पास माशी नदी में।
  • यह नदी टोरड़ी सागर बांध को भरती है।
कुनु नदी
  • उद्गम स्थल- गुना शहर (मध्यप्रदेश)।
  • राज्य की एकमात्र नदी जो बारां जिले में स्थित मुसेड़ी गांव व कोटा जिले में स्थित गोवर्धनपुरा गांव में दो बार प्रवेश करती है।
2. अरब सागर में गिरने वाली नदियां
  • ये नदियां सामान्यतः अरावली के दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई अपना जल अरब सागर में ले जाती है।
माही नदी
  •  उपनाम- दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा, बांगड़ व कांठल की गंगा, आदिवासियों की गंगा।
  •  उद्गम स्थल- मध्यप्रदेश में धार जिले के सरदारपुरा के निकट विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित मेहद झील से।
  • राजस्थान में प्रवेश- खांदू गांव (बांसवाड़ा) के निकट। यह नदी तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान व गुजरात में बहती है।
  • समापन- गुजरात में खम्भात की खाड़ी में। गुजरात में इस नदी का प्रवेश पंचमहल जिले में रामपुर के पास।
  • त्रिवेणी संगम- यह नदी डूंगरपुर जिले में बेणेश्वर नामक स्थान पर सोम और जाखम नदियां मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती है। इस स्थान पर माघ पूर्णिमा को मेला भरता है।जिसे आदिवासियों का कुंभ कहा जाता है।
  • कुल लम्बाई- 576 किमी. है जबकि राजस्थान में इसकी लम्बाई 171 किमी. है।
  • राज्य के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में बहने वाली यह नदी डूंगरपुर व बांसवाड़ा के मध्य प्राकृतिक सीमा बनाती है।
  • यह नदी दक्षिणी राजस्थान में मध्य माही का मैदान बनाती है जिसे छप्पन का मैदान कहा जाता है।
  • यह नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
  • बांसवाड़ा के लोहारिया गांव के निकट माही बजाज सागर बांध एवं कागदी पिकअप बांध बोरखेड़ा स्थान तथा कडाना बांध गुजरात के पंचमहल जिले में निर्मित है।
  • सहायक नदियां- 
  • सोम नदी- उद्गम स्थल- उदयपुर जिले की बीछामेड़ा की पहाड़ियां।समापन- डूंगरपुर में माही नदी में। इसकी सहायक नदियां जाखम, गोमती व सारनी।
  • जाखम नदी- यह नदी प्रतापगढ़ जिले में छोटी सादड़ी के निकट भंवरमाता की पहाड़ियों से निकलती है।समापन- धरियावद (प्रतापगढ़) में सोम नदी में।जाखम बांध- छोटी सादड़ी में जाखम नदी पर निर्मित बांध।
  • अन्य सहायक नदियां- मोरन, ऐराव,चाप, अन्नास व इरू।
लूनी नदी
  •  उपनाम- आधी मिठी और आधी खारी नदी, मारवाड़ की जीवन रेखा, लवणवती तथा मरूस्थल की गंगा।
  •  उद्गम स्थल- नाग पहाड़, अजमेर।
  • यह नदी अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर तथा जालौर जिलों में बहती हुई गुजरात में प्रवेश कर कच्छ के रण में विलीन हो जाती है।
  • अरावली के पश्चिम में बहने वाली प्रमुख नदी जिसका पानी बालोतरा (बाड़मेर) के बाद खारा हो जाता है।
  • कुल लम्बाई- 330 किमी.।
  • महाकवि कालिदास ने लूनी को अंत: सलिला कहा है।
  • मरुस्थलीय क्षेत्र की एकमात्र समन्वित जल प्रवाह प्रणाली है।
  • पश्चिमी राजस्थान की सबसे लंबी नदी।
  • उद्गम स्थल से इसका नाम सागरमती बाद में सरस्वती और अन्त में लूनी नदी हो जाती है।
  • सहायक नदियां- 
  • जवाई नदी- बाली (पाली) के निकट गोरियां गांव। समापन- बालोतरा (बाड़मेर) में लूनी नदी में। पाली में इस नदी पर जवाई बांध बनाया गया है।
  • सूकड़ी नदी-  यह नदी अरावली से निकलकर पाली तथा जालौर जिलों में बहती हुई माजल-बरवा के निकट बाड़मेर जिले में प्रवेश करती है। समदड़ी के पास बाड़मेर में लूनी नदी में मिल जाती है।
  •  मीठड़ी नदी- यह नदी पाली की अरावली की पहाड़ियों से निकलकर बाड़मेर जिले में मंगला नामक स्थान के पास लूनी नदी में मिलती है।
  • लीलड़ी नदी- पाली की अरावली की पहाड़ियों से निकलकर निम्बोल नामक स्थान के पास लूनी नदी में मिल जाती है।
  • जोजड़ी नदी- नागौर जिले के पोंडलू गांव की पहाड़ियों से निकलकर जोधपुर में दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई बाड़मेर जिले के सीवाना नामक स्थान पर लूनी नदी में मिल जाती है। यह नदी अरावली श्रेणी से नहीं निकलती है तथा लूनी नदी में पश्चिम दिशा (दायीं ओर) से मिलने वाली एकमात्र नदी है।
  • बाडी नदी- यह नदी पाली जिले से निकलकर जोधपुर जिले की सीमा पर लूनी नदी में मिलती है।
साबरमती नदी

  •  उद्गम स्थल- उदयपुर जिले की कोटड़ी गांव की दक्षिणी-पश्चिमी अरावली पहाड़ियां।
  • समापन- खम्भात की खाड़ी में (अधिकतर प्रवाह क्षेत्र गुजरात में)।
  • गुजरात के गांधीनगर एवं अहमदाबाद शहर इसी नदी के तट पर बसे हुए हैं।
  • राजस्थान से निकलकर गुजरात जाने वाली साबरमती नदी पर देवास प्रथम एवं देवास द्वितीय नामक दो बांध बनाये गए हैं। इन बांधों का पानी सुरंग के द्वारा उदयपुर की झीलों में पहुंचेगा।
  • सहायक नदियां- मेस्ता, वेतरक, हथमती, वाकल व जाजम।
पश्चिमी बनास
  • उद्गम स्थल- सिरोही जिले के नया सनवारा गांव की पहाड़ियों से।
  • समापन- कच्छ की खाड़ी में।
  • सिपू नदी- पश्चिमी बनास की सबसे महत्वपूर्ण सहायक नदी है। आबू रोड (सिरोही) एवं गुजरात का डिसा शहर सिपू नदी के किनारे स्थित है।
 3. आंतरिक प्रवाह की नदियां
  • ये नदियां अपना जल किसी समुद्र में नहीं ले जाती है और न ही इनकी कोई सहायक नदियां होती है तथा ये कुछ भू-भाग पर प्रवाहित होकर विलीन या विलुप्त हो जाती है।
  • राज्य के लगभग 60 प्रतिशत भू-भाग पर आंतरिक प्रवाह प्रणाली पाई जाती है।
घग्घर नदी
  • उपनाम- प्राचीन सरस्वती या द्रष्द्वती नदी, मृत नदी, सोतरा नदी, राजस्थान का शोक।
  • यह नदी वैदिक संस्कृति की सरस्वती नदी के पेटे में बहती है।
  • यह राजस्थान में आंतरिक प्रवाह की सबसे लंबी नदी है।
  • उद्गम स्थल- कालका के पास हिमालय की शिवालिक पहाड़ियां (शिमला, हिमालय प्रदेश)।
  • राजस्थान में प्रवेश- हनुमानगढ़ जिले की टिब्बी तहसील के तलवाड़ा नामक स्थान पर।
  • किसी समय घग्घर नदी उफान पर होती तो तलवाड़ा, अनूपगढ और सूरतगढ़ होती हुई भारत पाकिस्तान सीमा को पार कर फोर्ट अब्बास (पाकिस्तान) तक चली जाती थी एवं यहां यह हकरा नाम से जानी जाती थी।
  • हनुमानगढ़ में स्थित भटनेर दुर्ग घग्घर नदी के तट पर स्थित है।
  • नाली- हनुमानगढ़ में घग्घर नदी के पाट को नाली कहा जाता है।
  • कालीबंगा- सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख केन्द्र इस नदी के किनारे स्थित है।
काकनी नदी
  • उपनाम- मसूरदी/काकनेय।
  • उद्गम स्थल- कोटारी (जैसलमेर)
  • बुझ झील- काकनी नदी जैसलमेर में इस झील का निर्माण करती है।
 कांतली नदी
  • उद्गम स्थल- खण्डेला की पहाड़ियां (सीकर)।
  • तोरावाटी- इस नदी का बहाव क्षेत्र।
  • समापन- झुंझुनूं-चुरू की सीमा पर।
  • सीकर में स्थित गणेश्वर सभ्यता का विकास इस नदी के तट पर हुआ।
साबी नदी
  • उद्गम स्थल- जयपुर व सीकर की सीमा पर स्थित सेवर की पहाड़ियों से निकलकर अलवर में प्रवाहित होकर पटौदी के मैदान में विलीन हो जाती है।
मंथा नदी
  • उद्गम स्थल- मनोहरपुर (जयपुर)।
  • समापन- सांभर झील।
रुपारेल नदी
  • उद्गम स्थल- अलवर जिले में थानागाजी तहसील की उदयनाथ पहाड़ियों से।
  • सरिस्का क्षेत्र तथा अलवर के दक्षिण में बहती हुई भरतपुर जिले में गोपालगढ़ के निकट प्रवेश करती है।
  • यह नदी भरतपुर जिले में विलुप्त हो जाती है।
  • इसे वराह तथा लसवारी भी कहा जाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
  • अरावली के उत्तर-पश्चिम भाग में अधिकतर आंतरिक जल प्रवाह प्रणाली पाई जाती है।
  • राजस्थान में भारत के कुल सतही जल का मात्र 1.16% ही है।
  • राज्य की दक्षिणी-पूर्वी नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • राज्य में सर्वाधिक नदियां कोटा संभाग में प्रवाहित होती है जबकि न्यूनतम नदियों वाला संभाग बीकानेर है।
  • चितौड़गढ़ जिले में सर्वाधिक नदियां बहती हैं जबकि बीकानेर व चुरू जिलों में कोई नदी नहीं बहती है।

Sunday, 13 August 2017

राजस्थान की मिट्टियां (Soils of Rajasthan)

राजस्थान की मिट्टियां (Soils of Rajasthan)

राजस्थान में निम्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं-
बलुई/रेतीली मिट्टी
  • राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र में पाई जाने वाली मिट्टी है।
  • यह मिट्टी रेत के टीलों (धोरों) के रूप में पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश क्षेत्रों जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, नागौर तथा चुरू जिलों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का कण मोटा होने के कारण जल शीघ्र ही विलीन हो जाता है। इसलिए वर्षा का जल कम समय के लिए नमी बना पाता है और सिंचाई का कोई विशेष लाभ नहीं होता है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन, कार्बनिक लवणों, ह्यूमस एवं खनिज लवणों की कमी पाई जाती है, परन्तु इसमें कैल्शियम लवणों की अधिकता रहती हैं।
  • ऐसे क्षेत्रों में बाजरा, मोठ, मूंग आदि की फसलें खरीफ के मौसम में पैदा की जाती है।
  • कम लवणीयता में ग्वार वायदा ढैंचा की फसलें बोई जाती है।
 जलोढ या कछारी मिट्टी
  •  जलोढ/कछारी/दोमट/कांप को ब्लैक कॉटन सायल भी कहा जाता है।
  • जलोढ मिट्टी नदियों के जल द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी होती है। इसका रंग पीला होता है।
  • इसमें नाइट्रोजन, कार्बनिक लवण तथा ह्यूमस पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
  • यह मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है तथा इसमें नमी बहुत समय तक रहती हैं
  • इस मिट्टी में जिंक, फास्फोरस तथा कैल्शियम लवणों की कमी होती है।
  • यह मिट्टी अलवर, जयपुर, भरतपुर, अजमेर, टोंक,सवाई माधोपुर, धौलपुर, कोटा आदि जिलों में पाई जाती है।
  • यह मिट्टी गेंहू, चावल, कपास व तंबाकू की फसल के लिए उपयोगी है।
लाल दोमट मिट्टी
  • लौह तत्व की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है।
  • यह बारीक कणों तथा नमी धारण करने वाली मिट्टी है।
  • प्राचीन स्फटकीय एवं कायान्तरित चट्टानों से निर्मित इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं केल्शियम लवणों की कमी तथा लौह तत्वों एवं पौटाश की अधिकता रहती है।
  • यह मिट्टी विशेष रूप से मक्के के उत्पादन हेतु उपयुक्त है, इसके अलावा कपास, गेंहू,जो,चना आदि की फसलें बोई जाती है।
  • यह मिट्टी राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर और चितौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है।
काली मिट्टी
  • यह मिट्टी राज्य के दक्षिणी- पूर्वी भाग बारां, कोटा, बूंदी, झालावाड़ जिले एवं रावतभाटा-भैंसरोड़गढ (चितौड़गढ़) में पाई जाती है।
  • इसमें बारीक कण, नमी धारण की उच्च क्षमता होती है।
  • इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जैविक पदार्थों (ह्यूमस) की कमी तथा केल्शियम एवं पोटाश पदार्थों की अधिकता रहती है।
भूरी मिट्टी
  • इस प्रकार की मिट्टी टोंक, स्वामी माधोपुर, बूंदी, भीलवाड़ा, उदयपुर और चितौड़गढ़ जिलों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का जमाव विशेषतः अरावली के पूर्वी भागों में बनास व उसकी सहायता नदियों के क्षेत्र में पाया जाता है।
  • इस मिट्टी में नाइट्रोजन व फास्फोरस लवणों का अभाव होता है, इसलिए इन लवणों से युक्त कृत्रिम खाद देने पर अच्छी फसलों का उत्पादन किया जा सकता है।
  • इस मिट्टी में खरीफ की फसलें बिना सिंचाई के तथा रबी की फसलें सिंचाई के द्वारा पैदा की जा सकती है।
सिरोजम मिट्टी
  • इसका रंग पीला-भूरा होता है।
  • मिट्टी के कण मध्यम मोटाई के होते हैं।
  • इसमें नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थों की कमी होने के कारण उर्वरा शक्ति कमजोर होती है।
  • इस मिट्टी को अरावली के पश्चिम में रेत के छोटे टीलों वाले क्षेत्रों में पाई जाने के कारण धूसर मरुस्थलीय मिट्टी भी कहा जाता है।
  • यह मिट्टी पाली, नागौर, अजमेर व जयपुर जिलों में पाई जाती है।
पर्वतीय मिट्टी
  • यह मिट्टी अरावली पर्वत के नीचे के प्रदेशों में पाई जाती है।
  • यह मिट्टी सिरोही, उदयपुर, पाली, अजमेर और अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में पाई जाती है।
  • इस मिट्टी का रंग लाल से लेकर पीला, भूरा रंग होता है।
  • यह मिट्टी पहाड़ी ढलानों पर होती है इसलिए मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती नहीं की जा सकती है। बल्कि जंगल लगाए जा सकते हैं।
लवणीय (क्षारीय) मिट्टी
  • वह मिट्टी जिसकी भौतिक एवं रासायनिक अवस्था सोडियम की अधिक मात्रा के कारण बहुत अधिक प्रभावित होती है, क्षारीय मिट्टी कहलाती हैं।
  • लवणीय क्षारीय मिट्टी को भूरा ऊसर,रेहयुक्त ऊसर या रेहीली ऊसर नाम से भी जाना जाता है।
  • इसमें क्षारीय लवणों की अधिकता होने के कारण पूर्णतः अनुपजाऊ होती है।
  • यह मिट्टी राज्य के श्रीगंगानगर, बाड़मेर एवं जालौर जिलों में पाई जाती है।
  • मिट्टी की लवणीयता के कारण- *मिट्टी में सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि की अधिकता। * खारे पानी से सिंचाई, उच्च भू-जल स्तर, कठोर परत का बनना।
  • इस मिट्टी को सुधारने के लिए गोबर का खाद, ग्वार या ढैंचा की फसलें तथा जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
  • लवणीय व क्षारीय मिट्टियों वाले क्षेत्रों में अमोनियम फास्फेट का उपयोग अधिक उपयुक्त रहता है।
  • जिप्सम - मिट्टी में खारापन या क्षारीयता की समस्या समाधान हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।
मृदा अपरदन
  • मृदा का स्थानांतरण बहते हुए जल, हवा अथवा हिम के साथ होता है- मिट्टी की ऊपरी सतह पर से उपजाऊ मृदा का स्थानांतरित हो जाना मिट्टी का अपरदन या मिट्टी का कटाव कहलाता है।
  • अवनालिका अपरदन/कन्दरा समस्या - भारी बारिश के कारण जल द्वारा मिट्टी का कटाव जिससे गहरी घाटी तथा नाले बन जाते हैं।
  • इस समस्या से कोटा (सर्वाधिक), बूंदी, धौलपुर, भरतपुर, जयपुर तथा सवाई माधोपुर जिले ग्रस्त हैं।
  • परतदार अपरदन- वायु द्वारा मिट्टी की ऊपरी परत का उड़ाकर ले जाना।
  • मृदा अपरदन - मुख्यत: पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई, अवैज्ञानिक ढंग से कृषि, वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण होता है।
  • सेम समस्या/जलाधिक्य - नहरों से सिंचित क्षेत्रों में यह समस्या पाई जाती है।
  • देश की व्यर्थ भूमि का 20% भाग राजस्थान में पाया जाता है, क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर (37.30%) में है।
  • राजसमंद- उपलब्ध क्षेत्र के प्रतिशत की दृष्टि से यह ज़िला सर्वाधिक व्यर्थ भूमि क्षेत्र में आता है।


Monday, 7 August 2017

राजस्थान की जलवायु

राजस्थान की जलवायु और मौसम

  • जलवायु - किसी भू-भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयों में विविध मौसमों की औसत अवस्था।
  • मौसम - मुख्यत: कम अवधि जैसे एक दिन, एक सप्ताह, एक माह के दौरान निर्धारित दशाओं का औसत।
  • राजस्थान की जलवायु को इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति ने अधिक प्रभावित किया है, यहां के अधिकांश भागों में मरुस्थलीय जबकि शेष भागों में अर्द्ध नम जलवायु पाई जाती हैं।
  • कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण- 1918में कोपेन ने राज्य की जलवायु को चार भागों में बांटा-
  • (Aw) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश- डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बांसवाड़ा जिला।
  • (BShw)अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश- बाड़मेर, नागौर, चुरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण -पूर्वी गंगानगर आदि क्षेत्र।
  • (BWhw) शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश- उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर।
  • (Cwg) शुष्क शीत जलवायु प्रदेश- अरावली पर्वत के दक्षिणी - पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती,मेवात एवं डांग क्षेत्र)।
  • राजस्थान में प्रमुख रूप से तीन मौसम है-
  1.  गर्मी का मौसम- मध्य मार्च से जून तक के इस मौसम में मई और जून सबसे गर्म महीने होते हैं, इस अवधि में उच्चतम तापमान 44° सेल्सियस से 48° सेल्सियस तक रहता है।
  • इस दौरान रेगिस्तानी क्षेत्र में उच्चतम तापमान जबकि सिरोही जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई अधिक होने के कारण औसत तापमान कम रहता है।
  • गर्मी के मौसम में निम्न वायुदाब वाले क्षेत्रों में वायु की कमी को पूरा करने के लिए चारों ओर से जो तेज़ गर्म हवाएं चलती है, उन्हें लू कहा जाता है।
  • सबसे अधिक धूलभरी आंधियां गंगानगर (27 दिन), बीकानेर (18 दिन), जैसलमेर (16 दिन) बाड़मेर (13 दिन) में चलती हैं।
2. वर्षा का मौसम - जून के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक राजस्थान में दक्षिण-पश्चिम से सर्वाधिक वर्षा होती हैं।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाएं हैं - I. बंगाल की खाड़ी की शाखा तथा ii. अरब सागर की शाखा।
  • राजस्थान में वर्षा का वार्षिक औसत लगभग 54.78 सेमी हैं।
  • राजस्थान में कुल वर्षा का लगभग 90% भाग दक्षिणी- पश्चिमी मानसून से प्राप्त होता है।
  • राज्य में वर्षा के दिनों की औसत संख्या वर्ष भर में 29 दिन है।
  • जैसलमेर- जिला स्तर पर राजस्थान में वर्षा की सर्वाधिक परिवर्तनशीलता वाला जिला।
  • झालावाड़-बांसवाडा़ - जिला स्तर पर राजस्थान में वर्षा की न्यूनतम परिवर्तनशीलता वाला जिला।
  • खण्ड वृष्टि - राज्य के किसी गांव या गांवों के समूह में या क्षेत्र विशेष में वर्षा एकाएक बहुत अधिक हो जाती है, जबकि पास में ही स्थित क्षेत्र या गांव पूर्णतः सूखा रह जाता है, इसे खण्ड वृष्टि कहते हैं।
  • बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाओं को स्थानीय भाषा में पुरवा कहा जाता है।
  • राजस्थान के पश्चिम में जैसलमेर व बीकानेर जिलों के 100 से 250 मिलीमीटर के बीच तथा पूर्व में बांसवाड़ा व झालावाड़ जिलों में 900 मिलीमीटर से अधिक औसत वार्षिक वर्षा होती हैं।
  • राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा सिरोही जिले के मांउट आबू क्षेत्र में जबकि जैसलमेर जिले में न्यूनतम वार्षिक वर्षा होती हैं।
3. सर्दी का मौसम - यह मौसम नवम्बर से मध्य मार्च तक रहता है, जनवरी के महीने में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।
  • इस दौरान चुरू, बीकानेर, श्रीगंगानगर, फलौदी(जोधपुर), जैसलमेर आदि जिलों में न्यूनतम तापमान (-3° सेल्सियस) तक रहता है।
  • सर्दियों में भूमध्य सागरीय चक्रवातों (पश्चिमी विक्षोभो ) के कारण उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में वर्षा होती है जिसे मावट कहते हैं।
जलवायु आधारित प्रदेश
  • तापक्रम, वर्षा और आर्द्रता के आधार पर राजस्थान को चार प्रमुख प्रदेशों में बांटा गया है-
  • शुष्क प्रदेश- इस प्रदेश में सम्पूर्ण जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर और जोधपुर का उत्तरी भाग, बीकानेर का पश्चिमी भाग और श्रीगंगानगर का दक्षिणी भाग शामिल हैं।
  • यह राज्य के लगभग एक चौथाई भाग पर विस्तृत है।
  • इस प्रदेश में गर्मीयों में भंयकर गर्मी, लू, धूलभरी आंधियां एवं वर्षा की अनिश्चितता की दशाएं पाई जाती है।
  • यहां गर्मीयों में औसत तापमान 34°-40° सेल्सियस और सर्दियों में 12°-16° सेल्सियस रहता है।
  • यहां 10 - 25 सेमी. औसत वार्षिक वर्षा होती है।
  • यह प्रदेश प्राकृतिक वनस्पति रहित है तथा कंटीली झाड़ियां व वृक्ष मिलते हैं।
2. अर्द्ध शुष्क - इस प्रदेश में श्रीगंगानगर, बीकानेर, जोधपुर, चुरू, झुंझुनूं, सीकर, नागौर, पाली व जालौर जिले शामिल हैं।
  • यहां का वार्षिक औसत लगभग 20 - 40 सेमी. रहता है।
  • इस प्रदेश में कांटेदार झाड़ियां, घास के मैदान और अन्य रेगिस्तानी पेड़-पौधे पाये जाते हैं।
  • यहां गर्मीयों में औसत तापमान 30°-36° सेल्सियस तथा सर्दियों में 10° - 12° सेल्सियस होता है।
3. उप आर्द्र प्रदेश- इस प्रदेश में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा,टोंक, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, चितौड़गढ़ आदि जिले शामिल हैं।
  • इस प्रदेश में वार्षिक वर्षा औसत 40 - 60 सेमी. होने के कारण वनस्पति भी सघन पाई जाती है तथा नीम, पीपल, आंवला, खेजड़ी, बबूल आदि के वृक्ष मिलते हैं।
  • यहां ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 28° - 34° सेल्सियस तथा सर्दियों में 12° - 18° सेल्सियस रहता है।
 4. आर्द्र प्रदेश - इस प्रदेश में दक्षिणी राजस्थान के झालावाड़, बांसवाड़ा, डुंगरपुर एवं दक्षिणी उदयपुर जिले शामिल हैं।
  • यहां मानसूनी सवाना प्रकार तथा देशी सागवान व चौड़ी पत्ती की वनस्पति मिलती हैं।
  • यहां तापमान गर्मीयों में 30° - 34° सेल्सियस तथा सर्दियों में 12°-18° सेल्सियस रहता है।
सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान- मांउट आबू (150 सेमी.)
सर्वाधिक वर्षा वाला जिला- झालावाड़ (100 सेमी.)
न्यूनतम वर्षा वाला जिला- जैसलमेर (10 सेमी.)
सर्वाधिक शुष्क स्थान- फलौदी (जोधपुर)
सबसे अधिक आर्द्रता वाला स्थान- मांउट आबू
सबसे अधिक आर्द्रता वाला जिला- झालावाड़
सबसे अधिक गर्म महीना- जून
सबसे ठंडा महीना- जनवरी
सबसे अधिक वाष्पोत्सर्जन की वार्षिक दर - जैसलमेर
सबसे कम वाष्पोत्सर्जन की वार्षिक दर - बांसवाड़ा
सबसे कम आर्द्रता - मार्च, अप्रैल
सबसे अधिक आर्द्रता- जुलाई, अगस्त

Thursday, 3 August 2017

राजस्थान के प्रमुख पर्वत, पहाड़ीयां, पठार व मैदान

राजस्थान के प्रमुख पर्वत, पहाड़ियाँ, पठार व मैदान 

  • अरावली पर्वतमाला की प्रमुख चोटियाँ -
  1. गुरु शिखर (मांउट आबू, सिरोही )- ऊँचाई -1722 मीटर।  राजस्थान की सबसे ऊँची चोटी। यह हिमालय व पश्चिमी घाट की नीलगिरि के मध्य स्थित सर्वाधिक ऊँची चोटी है। कर्नल जेम्स टॉड ने इसे संतों का शिखर कहा है। 
  2. सेर (मांउट आबू) - ऊँचाई - 1597 मीटर। राज्य की दूसरी सबसे ऊँची चोटी। 
  3. जरगा (उदयपुर) -ऊँचाई -1431 मीटर। राज्य की तीसरी सबसे ऊँची चोटी। जो भोरठ का पठार स्थित है। 
  4. अचलगढ़ (सिरोही) - ऊँचाई -1380 मीटर। 
  5. रघुनाथगढ़ (सीकर) - ऊँचाई - 1055 मीटर। उत्तरी अरावली की सबसे ऊँची चोटी। 
  6. तारागढ़ (अजमेर ) - ऊँचाई 873 मीटर। 
  • मुकुंदरा पहाड़ियाँ - कोटा व झालावाड़ के बीच स्थित इस भू-भाग का ढ़ाल दक्षिण से उत्तर की ओर है, अतः चम्बल नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है। 
  • मालखेत की पहाड़ियाँ - सीकर जिले की पहाड़ियों का स्थानीय नाम। 
  • हर्ष की पहाड़ियाँ -सीकर जिले में स्थित पहाड़ी, जिस पर जीणमाता का प्रसिद्ध मंदिरस्थित है। 
  • सुंडा पर्वत -भीनमाल (जालौर) के निकट स्थित पहाड़ियाँ, जिनमें सुंडा माता का मंदिर स्थित है।  इस पर्वत पर राज्य का पहला रोप वे प्रारंभ किया गया। 
  • मालाणी पर्वत श्रृंखला - लूणी बेसिन का मध्यवर्ती घाटी भाग, जो बालोतरा (बाड़मेर) में स्थित है। 
  • नाकोड़ा पर्वत/ छप्पन की पहाड़ियाँ - सिवाणा (बाड़मेर) 
  •  भैंराच व खो पर्वत - अलवर। 
  • चिड़ियाटूंक पहाड़ी -जोधपुर जिले में मेहरानगढ़ किला इसी पर स्थित है। 
  • जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ - आबू क्षेत्र के पश्चिम में स्थित पहाड़ियाँ। डोरा पर्वत चोटी यहीं स्थित है। इसी क्षेत्र में जालौर में रोजा भाकर, इसराना भाकर और झारोल पहाड़ स्थित है। 
  • उड़िया पठार - राज्य का सबसे ऊँचा पठार, जो गुरू शिखर ले नीचे स्थित है। जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 1360 मीटर है। 
  • आबू पठार - राज्य का दूसरा सबसे ऊँचा पठार, जिसकी औसत ऊँचाई 1200 मीटर है तथा यह सिरोही जिले में स्थित है।  यही पर टॉड रॉक एवं हार्न रॉक स्थित है। 
  • मेसा पठार - 620 मीटर ऊँचा पठारी भाग, जिस पर चितौड़गढ़ दुर्ग स्थित है। 
  • भोरठ का पठार - राज्य का तीसरा सबसे ऊँचा पठार, जो उदयपुर के उत्तर पश्चिम में गोगुन्दा ो कुंभलगढ़ के बीच स्थित है। 
  • भाकर - पूर्वी सिरोही क्षेत्र में अरावली की तीव्र ढाल वाली व ऊबड़-खाबड़ कटक (पहाड़ियाँ ) जिन्हें स्थानीय भाषा में भाकर कहा जाता है। 
  • गिरवा - उदयपुर क्षेत्र में तश्तरीनुमा आकृति वाले पहाड़ों की शृंखला को स्थानीय भाषा में गिरवा कहते है। 
  • लसाड़िया का पठार - उदयपुर में जयसमंद से आगे पूर्व की ओर विच्छेदित व कटाफटा पठार। 
  • त्रिकूट पहाड़ी - जैसलमेर किला इसी पर स्थित है। 
  • उपरमाल - चितौड़गढ़ के भैंसरोड़गढ़ से भीलवाड़ा के बिजौलिया तक का पठारी भाग रियासत कल में उपरमाल  के नाम से जाना जाता है। 
  • आडावाला पर्वत - बूँदी जिले में स्थित है। 
  • मगरा - उदयपुर का उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय भाग। यही जरगा पर्वत स्थित है। 
  • नाल - अरावली श्रेणियों में मध्य मेवाड़ क्षेत्र में स्थित तंग रास्ता (दर्रों ) को स्थानीय भाषा में नाल कहते है। 
  • मेवाड़ में प्रमुख नाल - 1. जिलवा की नाल (पगल्या नाल)- यह मारवाड़ से मेवाड़ में आने का रास्ता प्रदान करती है। 2. सोमेश्वर की नाल - देसूरी से कुछ मील का रास्ता उत्तर में स्थित विकट तंग दर्रा।  3. हाथी गुढ़ा की नाल - देसूरी से दक्षिण में 5 मील दूरी पर स्थित नाल।  कुम्भलगढ़ का किला इसी नाल के नजदीक है। 
  • बिजासन का पहाड़ - मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) के पास स्थित है।

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